वर्तमान युवा दशा और दिशा पर निबंध | Vartaman Yuva Dasha Aur Disha Par Nibandh

वर्तमान युवा दशा और दिशा पर निबंध | Vartaman Yuva Dasha Aur Disha Par Nibandh



वर्तमान युवा दशा और दिशा

संकेत बिन्दु :- भूमिका, भारत का युवा वर्ग, युवाओं में असामाजिक तत्त्वों के कारण बढ़ता असन्तोष, युवावर्ग का योगदान, उपसंहार

भूमिका :-

वर्तमान युग में युवा पीढ़ी का विद्रोह, छात्र-असन्तोष आदि बातें प्रायः सुनने को मिलती हैं। युवा-असंतोष का विस्फोट प्रायः असंयत एवं उग्ररूप धारण कर लेता है। इस प्रक्रिया में हमारे देश के युवा प्रायः हिंसक भी हो उठते हैं। फलतः उनको लक्ष्य करके प्रायः ऐसी बातें भी कही जाती हैं जिन्हें सुनकर ऐसा प्रतीत होने लगता है कि हमे युवा पीढ़ी से कुछ भी आशा नहीं करनी चाहिए और तद्नुसार हमारे देश का भविष्य भी अनिश्चित है, क्योंकि हमारे भावी कर्णधार दिगभ्रमित हो गए हैं। आज हमारे युवा वर्ग के व्यवहार में विद्रोह है, आक्रोश है अथवा मात्र असन्तोष की अभिव्यक्ति है।

भारत का युवा वर्ग :-

भारत के युवाओं ने देशभक्ति के अतिरिक्त अध्यात्म, धर्म, साहित्य, विज्ञान, कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों में भी पूरे विश्व में भारत का नाम रोशन किया है। बिना युवा शक्ति के भारत सोने की चिड़िया न कहलाता और अपनी अनगिनत देनों से विश्व को अभिभूत न कर पाता। अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था– “सम्पूर्ण मानव जाति को उस भारत का ऋणी होना चाहिए, जिसने विश्व को शून्य (0) दिया है।” मैक्समूलर ने भी भारतवर्ष की उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए लिखा है-“यदि मुझसे पूछा जाए कि किस आकाश के नीचे मानव मस्तिष्क ने मुख्यतः अपने गुणों का विकास किया, जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या पर सबसे अधिक गहराई के साथ सोच-विचार किया और उनमें से कुछ ऐसे रहस्य ढूंढ निकाले. जिनकी ओर सम्पूर्ण विश्व को ध्यान देना चाहिए, जिन्होंने प्लेटो और काण्ट का अध्ययन किया, तो मैं भारतवर्ष की ओर संकेत करूँगा।” भारत की इन्हीं विशेषताओं के कारण राष्ट्रकवि मैथिलीशरण ‘गुप्त’ ने भी लिखा है

“देखो हमारा विश्व में, कोई नहीं उपमान था। नरदेव थे हम और भारत देवलोक समान था।”

भारतवर्ष की इन महान् उपलब्धियों के पीछे देश के युवा वर्ग का बहुत बड़ा योगदान है। आज आई आई टी आई आई एम जैसे देश के बड़े-बड़े शैक्षणिक संस्थानों या अन्य विश्वविद्यालयों से जुड़े छात्र-छात्राओं के आविष्कारों और शोधों की बदौलत भारत तेज़ी से विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। इतना ही नहीं आज भारतीय छात्र-छात्राएँ विदेशों में जाकर भी विश्व के लोगों को अपनी प्रतिभाओं से अचम्भित कर रहे हैं।

आज भारत के युवा वर्ग ने महात्मा गांधी के इस कथन को अपने जीवन में चरितार्थ कर दिखाया है-“अपने प्रयोजन में दृढविश्वास रखने वाला एक कृशकाय शरीर भी इतिहास के रुख को बदल सकता है।” आज इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश के युवा वर्ग में भारी असन्तोष व्याप्त है। स्कूल-कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी यहाँ के छात्र-छात्राओं का भविष्य अन्धकारमय है। न तो उन्हें नौकरी मिल पाती है और न ही उनका किताबी ज्ञान जीवन के अन्य कार्यों में ही उपयोगी सिद्ध हो पाता है।

युवाओं में असामाजिक तत्त्वों के कारण बढ़ता असन्तोष :-

वे गरीबी, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार आदि समस्याओं के जाल में फँसते चले जाते हैं। कई बार तो प्रतिभाशाली विद्यार्थी भी आरक्षण अथवा सरकार की अन्य गलत, नीतियों का शिकार हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में युवा वर्ग को सही मार्गदर्शन भी नहीं मिल पाता, फलस्वरूप युवा वर्ग भ्रमित एवं कुण्ठाग्रस्त होकर पूरी व्यवस्था का विरोध करने के लिए आन्दोलन करने लगता है।

कुछ राजनीतिज्ञ युवाओं द्वारा चलाए गए आन्दोलनों में रुचि लेने लगते हैं, तो कुछ ऐसे आन्दोलनों को जीवित रखने के लिए असामाजिक तत्त्वों की सहायता लेने में भी संकोच नहीं करते। जब ये असामाजिक तत्त्व लूट या आगजनी करते हैं, तो इन विध्वंसक गतिविधियों हेतु युवाओं को दोषी ठहराया जाता है। पहले से ही कुण्ठित युवा और अधिक कुण्ठित हो जाते हैं, जिससे उनमें असन्तोष की भावना और बढ़ जाती है।

युवा असन्तोष का परिणाम उत्तेजनापूर्ण आन्दोलनों के रूप में सामने आता है। थे क्रुद्ध युवा जो घोर अन्याय से उत्पीड़ित महसूस करते हैं या जो विद्यमान ढांचों एवं अवसरों से नाराज होते हैं, सामूहिक रूप से सत्तारूढ़ व्यक्तियों पर युवा उत्तेजनापूर्ण आन्दोलन के रूप में कुछ परिवर्तन लाने के लिए दबाव डालते हैं।

वर्ष 1979 में ‘जयप्रकाश नारायण’ ने छात्र समुदाय को संगठित कर शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति लाने हेतु एक विशाल अभियान चलाया था, जिसमें युवा वर्ग को सन्देश देते हुए उन्होंने कहा था–“निश्चय ही देश का राजनीतिक चेहरा बदल चुका है, पर विद्यार्थियों की समस्याएँ वैसी ही है। उनके मन में असन्तोष की जो चिंगारियां है, वे अब प्रकट हो रही है। यदि इस असन्तोष को रचनात्मक दिशा न दो गई, तो अराजकता पैदा होगी और देश का भविष्य अस्थिर हो जाएगा।

युवावर्ग का योगदान :-

सचमुच यदि किसी देश का युवा वर्ग जाग जाए और रचनात्मक कार्यों में जुट जाए, तो उस देश को समृद्ध और उन्नत होने से कोई नहीं रोक सकता। इधर हाल के वर्षों में अन्ना हज़ारे के द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध किए गए देशव्यापी आन्दोलन और दिल्ली में निर्भया काण्ड के बाद बलात्कार के कानून में परिवर्तन की माँग को लेकर एकजुट हुए देशभर के युवाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि आज भी भारत की युवा पीढ़ी सोई नहीं है, उन्हें भी देश-दुनिया की उतनी ही चिन्ता है, जितनी देश के बड़े-बुज़ुर्गों को। देश के लिए यह भावना हितकर है, किन्तु प्रत्येक कार्य व संकल्प हेतु नैतिक व जीवन-मूल्य का होना अत्यावश्यक है। आज भारत के युवाओं को ‘अब्दुल कलाम’ की इन पंक्तियों से प्रेरणा लेने की आवश्यकता है- “आकाश की ओर देखो। हम अकेले नहीं हैं। सारा ब्रह्माण्ड हमारे लिए अनुकूल है और जो सपने देखते हैं और मेहनत करते हैं, उन्हें वह उनका हक प्रदान करता है।”

उपसंहार :-

‘स्वामी विवेकानन्द’ ने युवा शक्ति को आह्वान करते हुए कहा था – ” समस्त शक्तियाँ तुम्हारे अन्दर हैं। तुम कुछ भी कर सकते हो और सब-कुछ कर सकते हो, यह विश्वास करो। मत विश्वास करो कि तुम दुर्बल हो । तत्पर हो जाओ। जरा-जीर्ण होकर थोड़ा-थोड़ा करके क्षीण होते हुए मरने के बजाय वीर की तरह दूसरों के अल्प कल्याण के लिए लड़कर उसी समय मर जाना क्या अच्छा नहीं है?” आज भारत के युवाओं को विवेकानन्द के विचारों से सीख लेकर उन्हीं के बताए मार्गों पर चलने की आवश्यकता है, तभी वे बेहतर भारत का निर्माण कर सकते हैं। आज युवाओं को महात्मा गांधी के कहे इस कथन के मर्म को समझने और उसे जीवन में उतारने की आवश्यकता है

“खुद वो बदलाव बनिए, जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं।”

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