भ्रष्टाचार के कारण और निवारण पर निबंध | Bhrashtachar Ke Karan Aur Nivaran Par Nibandh


भ्रष्टाचार के कारण और निवारण पर निबंध | Bhrashtachar Ke Karan Aur Nivaran Par Nibandh



भ्रष्टाचार: कारण और निवारण

संकेत बिन्दु :- भ्रष्टाचार का अर्थ, भ्रष्टाचार के कारण, सरकारी न्याय तन्त्र में शिथिलता, प्रशासन में भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार का समाधान, उपसंहार ।

भ्रष्टाचार का अर्थ :-

भ्रष्टाचार शब्द ‘भ्रष्ट’ एवं ‘आचार’ दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘भ्रष्ट’ का अर्थ है - बिगड़ा हुआ तथा ‘आचार’ का अर्थ है - आचरण या व्यवहार। इस प्रकार भ्रष्टाचार का अर्थ हुआ - भ्रष्ट आचरण या बिगड़ा हुआ व्यवहार समाज में विभिन्न स्तरों और क्षेत्रों में कार्यरत् व्यक्तियों से जिस निष्ठा एवं ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है, उसका न होना ही भ्रष्टाचार है। पक्षपात करना, मोटे तौर पर घूस लेना,  सार्वजनिक धन एवं सम्पत्ति का दुरुपयोग करना तथा स्वेच्छानुसार किसी को भी नियम विरुद्ध लाभ या हानि पहुँचाना आदि भ्रष्टाचार कहलाते हैं।

भ्रष्टाचार के कारण :-

भ्रष्टाचार की समस्या से छोटे - बड़े सरकारी तथा गैर-सरकारी सभी व्यक्ति पीड़ित हैं। इसलिए सरकारी संस्थागत एवं व्यक्तिगत स्तर पर इसके कारणों को जानने का प्रयास किया जाना चाहिए।

प्रायः देखा गया है कि राष्ट्रीय आपदा एवं संघर्ष के अवसर पर हमारे जीवन में श्रेष्ठ मूल्यों; जैसे- एकता, त्याग, बलिदान इत्यादि की भावनाएँ विद्यमान रहती हैं। स्वतन्त्रता संघर्ष के समय हमारे समाज में भी नैतिक स्तर ऊँचा था। सभी स्वार्थ एवं वर्गभेद मिटाकर देश के लिए कुछ कर गुजरने को तत्पर थे, किन्तु स्वतन्त्रता के बाद देश के नैतिक और चारित्रिक स्तर में गिरावट आई। उपभोग के साधनों के लिए अधिक से अधिक धन की आवश्यकता होती है, इसलिए किसी भी प्रकार धन एकत्रित करना ही मनुष्य का उद्देश्य होता गया। विद्यालय और परिवार अपने सदस्यों को नैतिकता सिखाने में असमर्थ हो गए। इसी कारण देश व समाज में भ्रष्ट वातावरण व्याप्त होता गया।

सरकारी न्याय तन्त्र में शिथिलता :-

भ्रष्टाचार में लिप्त होने वाले व्यक्ति को इससे रोकने में या तो नीति ज्ञान सहायक होता है या समाज का दण्ड विधान। यह बात सही। है कि जब मनुष्य की आत्मा उचित– अनुचित का निर्णय करने योग्य नहीं रहती तथा जब नीति के बन्धन शिथिल हो जाते हैं, तब दण्ड की कठोरता का डर व्यक्ति को बुराइयों से रोकता है, लेकिन हमारी न्याय पद्धति एवं न्याय व्यवस्था इतनी शिथिल है। कि अपराध का निर्णय बहुत विलम्ब से होता है। सरकारी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने में शक्तिशाली विपक्ष एक सकारात्मक भूमिका निभा सकता है दुर्भाग्य की बात यह है कि हमने लोकतन्त्र की स्थापना तो कर ली, किन्तु अभी तक सशक्त एवं रचनात्मक विपक्ष की महत्ता को नहीं समझ पाए। यदि विपक्ष चाहे, तो वह सरकार के मनमाने आचरण पर अंकुश लगा सकता है।

प्रशासन में भ्रष्टाचार :-

भारत में बहुदलीय लोकतन्त्रीय राज्य व्यवस्था है। अनेक राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दल हर बार चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े करते हैं। उन्हें चुनाव लड़ाने के लिए प्रचुर साधनों एवं धन की आवश्यकता होती है। यह धन दलों को चन्दे द्वारा प्राप्त होता है। चुनावों के लिए चन्दा देकर बड़े - बड़े पूँजीपति किसी दल की सरकार बनने पर उससे अनुचित लाभ उठाते हैं। वे पर्याप्त धन चन्दे में इसलिए देते हैं, ताकि चन्दे में दी गई सम्पत्ति के बदले लाभ उठाया जा सके।

भ्रष्टाचार का समाधान :-

भ्रष्टाचार को दूर करना आसान काम नहीं है, समाप्त किए बिना हमारे देश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। हमें इसे दूर परन्तु इसे करना ही होगा। भ्रष्टाचार जैसी समस्या के समाधान के लिए चुनाव पद्धति में भी सुधार लाना आवश्यक है। सफल लोकतन्त्र नागरिकों की जागरूकता पर आश्रित होता है, इसलिए भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए नागरिकों में जागरूकता पैदा करना अत्यन्त जरूरी है, क्योंकि –

“यदि बदली नहीं व्यवस्था तो नेतृत्व बदल कर क्या होगा; जब खुद माझी ही पागल हो, पतवार बदलकर क्या होगा?”

राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय स्तर पर विचार और प्रयास करना आवश्यक है। आज हमारे समाज में भ्रष्टाचार एक रोग के रूप में व्याप्त है। जब तक सभी नागरिक और सभी दल निहित स्वार्थों और हितों से ऊपर उठ कर इस पर विचार नहीं करेंगे, तब तक भ्रष्टाचार जैसी समस्या से मुक्ति सम्भव नहीं है।

उपसंहार :-

यदि प्रशासन और जनता देश से भ्रष्टाचार रूपी दानव को मिटाने के लिए एक साथ होकर कार्य करें तो वह दिन दूर नहीं कि भारत भ्रष्टाचार मुक्त देश बन कर जल्द ही विकसित देशों की श्रेणी में आ खड़ा – होगा। हमें मिलकर यह संकल्प लेना होगा कि हम अपने महान् राष्ट्र की प्राचीन संस्कृति को पुनर्जीवित कर देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाएँगे, ताकि हमारा देश फिर से सोने की चिड़िया कहलाए।

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