भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव

संकेत बिन्दु :-भूमिका, पाश्चात्य संस्कृति का भौतिकता प्रधान एवं वैज्ञानिक होना, महिलाओं के व्यक्तित्व पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण, भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव, भारतीय संस्कृति की परम्पराएँ उपसंहार।

भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पर निबंध | Bhartiya Samaj Par Pashchatya sanskriti Ka Prabhav Par Nibandh

भूमिका :-

भारतीय संस्कृति अध्यात्म प्रधान है, जबकि पाश्चात्य संस्कृति को भौतिक प्रधान माना जाता है। अध्यात्म प्रधान संस्कृति से तात्पर्य अभौतिकतावादी दृष्टिकोण को अत्यधिक महत्त्व मिलने से है। परम्परागत दृष्टिकोण के अन्तर्गत हम अपने धार्मिक अर्थात् आध्यात्मिक दर्शन को लेकर बहुत हद तक अतीत के प्रति महिमामण्डित भाव रखते हैं, लेकिन आज आवश्यकता इस बात की है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाकर हमें इस तथ्य का मूल्यांकन करना चाहिए कि 21वीं सदी में भी क्या 5वीं सदी की मान्यताओं को जारी रखा जा सकता है? आज जब दुनिया विज्ञान की निरन्तर तीव्र प्रगति के बल पर चाँद तो क्या सूर्य को भी खंगालने की कोशिश कर रही है, मानव का क्लोन बनाकर ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने की कोशिश कर रही है, तो क्या इन परिस्थितियों में धर्म या आध्यात्मिकता को आवश्यकता से अधिक महत्त्व देना प्रासंगिक एवं बुद्धिमानीपूर्ण है?

पाश्चात्य संस्कृति का भौतिकता प्रधान एवं वैज्ञानिक होना :-

पाश्चात्य संस्कृति भौतिकता प्रधान और वैज्ञानिक संस्कृति है। भौतिकता प्रधान संस्कृति से तात्पर्य ऐसी संस्कृति से है, जो यथार्थवादी दृष्टिकोण को अधिक महत्त्व देती है। भौतिक का सामान्य अर्थ देखने या इन्द्रिय बोध से साक्षात सम्बन्ध रखने वाली वस्तु से है, अर्थात् जो यथार्थ एवं वास्तविक हो। पाश्चात्य संस्कृति को इसलिए वैज्ञानिक माना जाता है, क्योंकि इसमें जाँच-पड़ताल की मूल्यांकन पद्धति अपनाकर एक सामान्य सिद्धान्त या नियम बनाया जाता है, जिसके आधार पर भविष्यवाणी की जा सके और व्यक्ति एवं समाज की जीवन शैली को बेहतर बनाया जा सके।

भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव :-

एक ओर भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, तो दूसरी ओर यह हमारे लिए हितकारी भी साबित हो रही है। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हममें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना कम होती जा रही है। संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन हो रहा है। पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण एवं संघर्षपूर्ण हो गया है।

पाश्चात्य संस्कृति की नकल के कारण लोग स्वतन्त्र होकर जीवन-यापन करना पसन्द करते हैं, परिणामस्वरूप वैवाहिक सम्बन्धों में सुदृढ़ता एवं आत्मीयता का अभाव उत्पन्न हो गया है। संयुक्त परिवार में वैवाहिक सम्बन्धों को टूटने से बचाने के लिए जो पारिवारिक पृष्ठभूमि होती है, वर्तमान के एकल या नाभिक परिवारों में उसका अभाव है। इस कारण विवाह विच्छेद की समस्या में वृद्धि हुई है। वहीं दूसरी ओर प्रेम विवाह, अन्तर्जातीय विवाह जैसे मामलों में वृद्धि हुई है।

महिलाओं के व्यक्तित्व पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव :-

पाश्चात्य प्रभाव के कारण व्यक्तित्व के विकास में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, विशेषकर महिलाओं के व्यक्तित्व के विकास में। शिक्षा के प्रसार ने उन्हें अधिक महत्त्वाकांक्षी एवं आत्मविश्वासी बना दिया है। उनमें आत्मनिर्भरता की भावना का अत्यधिक विस्तार हुआ। शैक्षिक एवं आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर महिलाएँ, जो कल तक परम्परा की बेड़ियों में जकड़ी हुई घर की चहारदीवारी में कैद थीं, अब पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त करने लगी हैं।

पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण :-

पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण किया जाता है, जिसमें आधुनिक मूल्यों के साथ-साथ कुछ रूढ़िवादी परम्पराएँ भी शामिल रहती हैं, जबकि आधुनिकीकरण का अर्थ है— आधुनिक मूल्यों का अनुकरण करना एवं उसके अनुरूप व्यवहार करना। इस तरह पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत आँखें मूंदकर पाश्चात्य देशों की संस्कृति का अनुकरण नहीं किया जाता।

यही कारण है कि पश्चिमीकरण के अन्तर्गत मौजूद आधुनिक मूल्यों का अनुकरण करना तो तार्किक एवं उपयुक्त लगता है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के अन्य तत्त्वों का अन्धानुकरण अनुचित, किन्तु पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करने की होड़ में हम अपनी भाषा, संस्कृति, वेशभूषा, रहन-सहन, कला-विज्ञान, साहित्य आदि सभी कुछ भूल गए हैं।

भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव :-

शिक्षा का प्रसार, साधनों का विकास, भौतिकवादी संस्कृति का प्रचार आदि कारकों ने संचार रूढ़िग्रस्त परम्परागत भारतीय आदर्शों में अनेक सकारात्मक परिवर्तन किए हैं, जिनके फलस्वरूप रूढिग्रस्त, आडम्बरपूर्ण एवं अतार्किक धर्म के प्रति लोगों का लगाव कम होता जा रहा है। अधिकांश लोग अब भाग्य की अपेक्षा कर्म पर विश्वास करने लगे हैं। आधुनिकता आज समय की माँग है, लेकिन इसी के साथ-साथ भौतिकवादी दृष्टिकोण ने लोगों को यान्त्रिक बना दिया है। संवेदनाएँ, प्रेम, आत्मीयता का स्थान कृत्रिम एवं औपचारिक सम्बन्धों ने ले लिया है। मनुष्य अब अधिक एकाकी एवं स्वकेन्द्री बन गया है। लोगों के बीच आत्मीयता एवं आमने-सामने के स्नेहपूर्ण सम्बन्ध समाप्त होते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप सामाजिक जीवन नीरस एवं अर्थविहीन होता जा रहा है। इसी कारण आज आवश्यकता भारतीय संस्कृति की परम्पराओं को सहेजकर रखने के साथ-साथ पाश्चात्य संस्कृति के आधुनिक मूल्यों को आत्मसात् करने की है। पारम्परिकता आधुनिकता को आधार प्रदान करती है, उसे शुष्क नीरस एवं बुद्धि-विलासी बनने से बचाती है, मानवीय व्यवहार को एक सम्यक् अर्थ प्रदान करती है।

भारतीय संस्कृति की परम्पराएँ :-

भारतीय संस्कृति की परम्पराएँ हमें अपने भारतीय होने का अहसास कराती हैं, जो हमें विश्व के अन्य देशों से विकास की दौड़ में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। भारतीय संस्कृति की अनेक परम्पराएँ ऐसी हैं, जो सामाजिक जीवन को अधिक सरस एवं आत्मीय बनाए रखने में योगदान करती हैं, जिससे मनुष्य की तरह जीवन जिया जा सकता है, यन्त्र की तरह नहीं। वहीं पाश्चात्य संस्कृति की अनेक विशेषताएँ हमारे विचारों को अधिक तार्किक एवं बौद्धिक बनाती हैं, जिन्हें हम अपने व्यवहार में क्रियान्वित कर मनुष्य जीवन को अधिक सार्थक बना सकते हैं।

उपसंहार :-

इस प्रकार भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति में परस्पर विरोध नहीं, बल्कि अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। अतः हमें बुद्ध के सम्यक् सिद्धान्त का अनुसरण कर, जिसको समझाते हुए उन्होंने कहा था-सितार की तार को इतना न कसो कि वह टूट जाए और उसे इतना भी ढीला न छोड़ो कि वह बज ही न सके, दोनों संस्कृतियों की अच्छाइयों को ग्रहण करना एवं उनकी कमियों का त्याग करना चाहिए।

Post a Comment

Previous Post Next Post