सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय|Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay

सुमित्रानन्दन पन्त का जीवन परिचय | Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay

जीवन परिचय :-

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई, सन् 1900 ई० को हिमालय के सुरम्य प्रदेश कूमाँचल (कुमाऊँ) के अल्मोड़ा के कौसानी नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गंगादत्त पन्त था। वे भी क थे। माता के देहान्त के बाद इनका लालन-पालन इनकी दादी और पिता ने किया। ये हाईस्कूल में प्रवेश के लिए अल्मोड़ा के राजकीय विद्यालय में गये। वहीं पर इन्होंने अपना नाम 'गुसाई दत्त' से बदलकर सुमित्रानन्दन पन रखा। तत्पश्चात् इलाहाबाद के म्योर सेण्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन गाँधी जी के आह्वान पर इन्होंने कालेज छोड़ दिया। स्वाध्याय से इन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला साहित्य का अध्ययन किया। उपनिषद, दर्शन तथा आध्यात्मिक साहित्य में भी इनकी रुचि थी। प्रसिद्ध नर्तक उदय शंकर जी के सम्पर्क में आए, इसके बाद इनका परिचय अरविन्द घोष से हुआ। जिसका प्रभाव इनके साहित्य पर पड़ा। महान कवि पन्त का देहावसान 28 दिसम्बर, सन् 1977 ई० में हो गया।

साहित्यिक परिचय :-

छायावादी युग के प्रतिनिधि आधार स्तम्भ कवि सुमित्रानन्दन पन्त सात वर्ष की आयु में ही कविता लेखन करने लगे थे। इनकी प्रथम रचना वर्ष 1916 में प्रकाशित हुई, इसके बाद वर्ष 1919 में इनकी काव्य के प्रति रूचि और अधिक बढ़ी। इनकी स्वर्ण किरण, स्वर्ण धूलि, उत्तरा आदि रचनाओं पर अरविन्द दर्शन का प्रभाव पड़ा। वर्ष 1961 में इन्हें 'कला और बूढ़ा चंद' नामक रचना पर 'पद्मभूषण', 'लोकायतन' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और 'चिदम्बरा' पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। काव्य में कोमल और मृदुल भावों की प्रधानता है। इसी कारण इन्हें 'प्रकृति का सुकुमार कवि' कहा। जाता है।

कृतित्व रचनाएँ :-

1. काव्य संग्रह : वीणा (1919), ग्रन्थि (1920), पल्लव (1926). गुंजन (1932), युगान्त (1937), युगवाणी (1938), ग्राम्या (1940), स्वर्ण-किरण (1947), युगान्तर (1948), उत्तरा (1949), चिदम्बरा (1958), कला और बूढ़ा चाँद (1959), लोकायतन (1964) आदि।

2. गीति नाट्य ज्योत्स्ना, रजत शिखर, अतिमा (1955) आदि।

3. उपन्यास हार (1960)

4. कहानी संग्रह एक एक पाँच कहानियाँ, पानवाला।

भाषा सौन्दर्य :-

भाव पक्ष : कवि पन्त के काव्य में सौन्दर्यानुभूति, प्रकृति चित्रण, नारी सौन्दर्य चित्रण आदि की प्रधानता है। कल्पना के विविध रूप, रस चित्रण भी अद्भुत हैं। प्रकृति का भावपूर्ण चित्रण होने के कारण ये प्रकृति के सुकुमार कवि कहलाते हैं।

कला पक्ष काव्य की भाषा चित्रात्मक खड़ी बोली है। उसमें संगीतात्मकता के गुणों की प्रधानता है। कोमलकान्त पदावली, लाक्षणिकता, प्रतीकात्मकता, ध्वन्यात्मकता, चित्रात्मकता, मनोरम बिम्ब विधान आदि काव्य शैलियों का प्रयोग है। शृंगार रस की प्रधानता है लेकिन गौण रूप से करूण, रौद्र, अद्भुत रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है। अलंकारों में उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति जैसे प्राचीन एवं मानवीकरण ध्वन्यर्थ व्यञ्जना जैसे पाश्चात्य अलंकारों का प्रयोग है। छन्दों में तुकान्त, मुक्तक एक नवीन छन्दों का प्रयोग हुआ है।

साहित्य में स्थान :-

कवि सुमित्रानन्दन पन्त कल्पना एवं भावों की सुकुमार कोमलता का चित्रण करने वाले सौन्दर्योपासक कवि हैं। ये युगदृष्टा व युगसृष्टा दोनों ही थे। इन्हें प्रगति के सुकुमार कवि एवं प्रगतिवादी कवि के रूप में साहित्य में याद किया जाता रहेगा।

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