नयी शिक्षा नीति पर निबंध

नयी शिक्षा नीति पर निबंध | नई शिक्षा नीति की क्या विशेषता है?

सम्बद्ध शीर्षक:

• आधुनिक शिक्षा-प्रणाली : एक मूल्यांकन

• वर्तमान शिक्षा प्रणाली के गुण और दोष

• बदलती शिक्षा नीति का छात्रों पर प्रभाव

• शिक्षा का गिरता मूल्यगत स्तर 

• वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार

प्रमुख विचार - 1. प्रस्तवना, 2. अंग्रेजी शासन में शिक्षा की स्थिति, 3. स्वतन्त्रता के पश्चात् की स्थिति, 4. शिक्षा नीति का उद्देश्य, 5. नयी शिक्षा नीति की विशेषताएँ, 6. नयी शिक्षा नीति 

प्रस्तावना :- शिक्षा मानव जीवन के सर्वांगीण विकास का सर्वोत्तम साधन है। प्राचीन शिक्षा-व्यवस्था मानव को उच्च आदर्शों की उपलब्धि के लिए अग्रसर करती थी और उसके वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जीवन के सम्यक विकास में सहायता करती थी। शिक्षा की यह व्यवस्था हर देश और काल में तत्कालीन सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन सन्दर्भों के अनुरूप बदलती रहनी चाहिए। भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली ब्रिटिश प्रतिरूप पर आधारित है, जिसे सन् 1835 ई0 में लागू किया गया था। अंग्रेजी शासन की गलत शिक्षा नीति के कारण ही हमारा देश स्वतन्त्रता के इतने वर्षों बाद भी पर्याप्त विकास नहीं कर सका।


अंग्रेजी शासन में शिक्षा की स्थिति :- सन् 1835 ईस्वी में जब वर्तमान शिक्षा प्रणाली की नींव रखी गयी थी तब लॉर्ड मैकाले ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि, "अंग्रेजी शिक्षा का उद्देश्य भारत में प्रशासन को बिचौलियों की भूमिका निभाने तथा सरकारी कार्य के लिए भारत के लोगों को तैयार करना है।" इसके फलस्वरूप एक सदी तक अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के प्रयोग में लाने के बाद सन् 1935 ई0 में भारत साक्षरता के 10% के आँकड़े को भी पार नहीं कर सका। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भी भारत की साक्षरता मात्र 13% ही थी। इस शिक्षा प्रणाली ने उच्च वर्गों को भारत के शेष समाज से पृथक् रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इसकी बुराइयों को सर्वप्रथम गाँधी जी ने सन् 1917 ई0 'गुजरात एजुकेशन सोसाइटी' के सम्मेलन में उजागर किया तथा शिक्षा में मातृभाषा के स्थान और हिन्दी के पक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर तार्किक ढंग से रखा। 

स्वतन्त्रता के पश्चात् की स्थिति :- स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में ब्रिटिशकालीन शिक्षा पद्धति में परिवर्तन के कुछ प्रयास किये गये। इनमें सन् 1968 ई0 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति उल्लेखनीय है। सन् 1976 ई0 में भारतीय संविधान में संशोधन के द्वारा शिक्षा को समवर्ती सूची में सम्मिलित किया गया, जिससे शिक्षा का एक राष्ट्रीय और एकात्मक स्वरूप विकसित किया जा सके। भारत सरकार ने विद्यमान शैक्षिक व्यवस्था का पुनरावलोकन किया और राष्ट्रव्यापी विचार-विमर्श के बाद 26 जून, सन् 1986 ई0 को नयी शिक्षा नीति की घोषणा की। 

शिक्षा नीति का उद्देश्य :- इस शिक्षा नीति का गठन देश को इक्कीसवीं सदी की ओर ले जाने के नारे को अंगरूप में ही किया गया है। नये वातावरण में मानव संसाधन के विकास के लिए नये प्रतिमानों तथा नये मानकों की आवश्यकता होगी। नये विचारों को रचनात्मक रूप में आत्मसात् करने में नयी पीढ़ी भी सक्षम होना चाहिए। इसके लिए बेहतर शिक्षा की आवश्यकता है। साथ ही नयी शिक्षा नीति का उद्देश्य आधुनिक तकनीक की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए उच्चस्तरीय प्रशिक्षण प्राप्त श्रम शक्ति को जुटाना है, क्योंकि इस शिक्षा नीति के आयोजकों के विचार से इस समय देश में विद्यमान श्रम-शक्ति यह आवश्यकता पूरी नहीं कर सकती।

नयी शिक्षा नीति की विशेषताएँ- (i) नवोदय विद्यालय- नयी शिक्षा नीति के अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में विशेषकर ग्रामीण अंचलों में नवोदय विद्यालय खोले जाएँगे, जिनका उद्देश्य प्रतिभाशाली छात्रों को बिना किसी भेदभाव के आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करना होगा। इन विद्यालयों में राष्ट्रीय पाठ्यक्रम लागू होगा।

(ii) रोजगारपरक शिक्षा- नवोदय विद्यालयों में शिक्षा रोजगारपरक होगी तथा विज्ञान और तकनीक उसके आधार होंगे। इससे विद्यार्थियों को बेरोजगारी का सामना नहीं करना पड़ेगा।

(iii) 10 + 2 + 3 का पुनर्विभाजन- इन विद्यालयों में शिक्षा 10 + 2 +3 पद्धति पर आधारित होगी। 'त्रिभाषा फार्मूला' चलेगा, जिसमें अंग्रेजी, हिन्दी एवं मातृभाषा या एक अन्य प्रादेशिक भाषा रहेगी सत्रार्द्ध प्रणाली (सेमेस्टर सिस्टम) माध्यमिक विद्यालयों में लागू की जाएगी और अंकों के स्थान पर विद्यार्थियों को ग्रेड दिये जाएँगे।

(iv) समानान्तर प्रणाली- नवोदय विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की एक समानान्तर शिक्षा-प्रणाली शुरू की जाएगी। 

(v) अवलोकन-व्यवस्था केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद्शिक्षा-संस्थानों पर दृष्टि रखेगी। एक अखिल भारतीय शिक्षा सेवा संस्था का गठन होगा। माध्यमिक शिक्षा के लिए एक अलग संस्था गठित होगी।

(vi) उच्च शिक्षा में सुधार अगले दशक में महाविद्यालयों से सम्बद्धता समाप्त करके उन्हे स्वायत्तशासी बनाया जाएगा। विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षा का स्तर सुधारा जाएगा तथा शोध के उच्च स्तर पर बल दिया जाएगा।

(vii) आवश्यक सामग्री की व्यवस्था प्राथमिक विद्यालयों में 'ऑपरेशन ब्लैक-बोर्ड' लागू होगा। इसके अन्तर्गत प्रत्येक विद्यालय के लिए दो बड़े कमरों का भवन एक छोटा-सा पुस्तकालय, खेलो का सामान तथा शिक्षा से सम्बन्धित अन्य साज-सज्जा उपलब्ध रहेगी। शिक्षा मन्त्रालय ने प्रत्येक विद्यालय के लिए आवश्यक सामग्री की एक आकर्षक और प्रभावशाली सूची भी बनायी है। प्रत्येक कक्षा के लिए एक अध्यापक की व्यवस्था की गयी है।

(viii) मूल्यांकन और परीक्षा सुधार- हाईस्कूल स्तर तक किसी को भी अनुत्तीर्ण नहीं किया जाएगा। परीक्षा में अंको के स्थान पर 'ग्रेड-प्रणाली' प्रारम्भ की जाएगी। छात्रों की प्रगति का आकलन क्रमिक मूल्यांकन द्वारा होगा।

(ix) शिक्षकों को समान वेतनमान देश भर में अध्यापकों को 'समान कार्य के लिए समान वेतन' के आधार पर समान वेतन मिलेगा। प्रत्येक जिले में शिक्षकों के प्रशिक्षण-केन्द्र स्थापित किये जाएँगे।

(x) मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना- नयी शिक्षा नीति के अन्तर्गत सम्पूर्ण देश के पैमाने पर एक मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया है। इस मुक्त विश्वविद्यालय का दरवाजा सबके लिए खुला रहेगा, न तो उम्र का कोई प्रतिबन्ध होगा और न ही समय का कोई बन्धन ।

(xi) नयी शिक्षा नीति के अन्तर्गत निजी क्षेत्र के व्यवसाय यदि चाहें तो आवश्यकता के अनुरूप शिक्षण-संस्थान खोल सकेंगे।

नयी शिक्षा नीति की समीक्षा वर्तमान शिक्षा प्रणाली में जो अनेकशः दोष है उनकी अच्छी-खासी चर्चा सरकारी परिपत्र 'Challenges of Education : A policy Perspective' में की गयी है। इस शिक्षा-प्रणाली से संस्कृत तथा अन्य भारतीय भाषाओं का भविष्य अन्धकारमय होकर रह गया है। इसके अन्तर्गत केवल अंगेजी का ही बोलबाला होगा, क्योंकि इसके लागू होने के साथ-साथ पब्लिक स्कूलों को समाप्त नहीं किया गया है। फलतः इस नीति की घोषणा के बाद देश में अंग्रेजी माध्यम वाले माण्टेसरी स्कूलों की गली-कूचों में बाढ़-सी आ गयी है। 

शिक्षा पर अयोग्य राजनेता दिनोदिन नवीन प्रयोग कर रहे हैं, जिससे लाभ के स्थान पर हानि हो रही है। शिक्षा के प्रश्न को लेकर बहुधा अनेकों गोष्ठियाँ मिनार आदि आयोजित किये जाते हैं किन्तु परिणाम देखकर आश्चर्य होता है कि शिक्षा-प्रणाली सुधरने के बजाय और अधिक निम्नकोटि की होती जा रही है। वस्तुतः भ्रष्टाचार के चलते अच्छे व समर्पित शिक्षा अधिकारी जो संख्या में इक्का-दुक्का ही है, उनके सुझावों का प्रायः स्वागत नहीं किया जाता। शिक्षा नीति अधिकारी पाठ्यक्रम भी कुछ इस प्रकार का निर्धारित किया गया है कि एक के बाद दूसरी पीढ़ी के आ जाने पर भी उसमें न कुछ संशोधन होता है, न ही परिवर्तन ।

निश्चित ही हमारी अधुनातन शिक्षा नीति, पद्धति, व्यवस्था एवं ढाँचा अत्यन्त दोषपूर्ण सिद्धपूर्ण सिद्ध हो चुका है कि यदि इसे शीघ्र ही न बदला गया तो हमारा राष्ट्र हमारे मनीषियों के आदर्शों की परिकल्पना तक नहीं पहुँच सकेगा।

उपसंहार- नयी शिक्षा के परिपत्र में प्रत्येक पाँच वर्ष के अन्तराल पर शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और मानदण्डों की समीक्षा की व्यवस्था की गयी है, किन्तु सरकारों में जल्दी-जल्दी हो रहे परिवर्तनों से इस नयी शिक्षा नीति से नवीन अपेक्षाओं और सुधारों की सम्भावनाओं में विशेष प्रगति नहीं हो पायी है। साथ ही यह शिक्षा नीति से नवीन अपेक्षाओं और सुधारो की सम्भावनाओं में विशेष प्रगति नहीं हो पायी है। साथ ही यह शिक्षा-नीति एक सुनियोजित व्यवस्था, साधन सम्पन्नता और लगन की माँग करती है। यदि नयी शिक्षा नीति को ईमानदारी और तत्परता से कार्यान्वित किया जाए तो निश्चय ही हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति की ओर बढ़ सकेंगे।

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