गंगा प्रदूषण पर निबंध - देश की भलाई गंगा की सफाई 

गंगा प्रदूषण पर निबंध - देश की भलाई गंगा की सफाई

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 # जल प्रदूषण  # देश की भलाई गंगा की सफाई 

प्रमुख विचार-बिन्दु :- 1. प्रस्तावना, 2. गंगा-जल के प्रदूषण के प्रमुख कारण- औद्योगिक कचरा व रसायन तथा मृतक एवं उनकी अस्थियों का विसर्जन, 3. गंगा प्रदूषण दूर करने के उपाय, 4. उपसंहार

प्रस्तावना :- देवनदी गंगा ने जहाँ जीवनदायिनों के रूप में भारत को धन-धान्य से सम्पन्न बनाया है वहीं माता के रूप में इसकी पावन धारा ने देशवासियों के हृदयों में मधुरता तथा सरसता का संचार किया है। गंगा मात्र एक नहीं, वरन् भारतीय जन-मानस के साथ-साथ समूची भारतीयता की आस्था का जीवंत प्रतीक है। हिमालय की गोद में पहाड़ी घाटियों से नीचे कल्लोल करते हुए मैदानों की राहों पर प्रवाहित होने वाली गंगा पवित्र तो है ही, वह मोक्षदायिनी के रूप में भी भारतीय भावनाओं में समाई है। 

भारतीय सभ्यता-संस्कृति का विकास गंगा-यमुना जैसी अनेकानेक पवित्र नदियों के आसपास ही हुआ है। गंगा-जल वर्षों तक बोतलों, डिब्बों आदि में बन्द रहने पर भी खराब नहीं होता था। आज वही भारतीयता की मातृवत् पूज्या गंगा प्रदूषित होकर गन्दे नाले जैसी बनती जा रही है, जो कि वैज्ञानिक परीक्षणगत एवं अनुभव तथ्य है। गंगा के बारे में कहा गया है

नदी हमारी ही है गंगा, प्लावत करती मधुररस धारा, बहती है क्या कहीं और भी, ऐसी पावन कल-कल धारा।

गंगा-जल के प्रदूषण के प्रमुख कारण :- पतितपावनी गंगा के जल के प्रदूषित होने के बुनियादी कारणों में से एक कारण है तो यह है प्राय: सभी प्रमुख नगर गंगा अथवा अन्य नदियों के तट पर और उसके आस-पास बसे हुए हैं। उन नगरों में आबादी का दबाव बहुत बढ़ गया है। वहाँ से मल-मूत्र और गन्दे पानी की निकासी की कोई सुचारू व्यवस्था न होने के कारण इधर-उधर बनाये गये छोटे-बड़े सभी गन्दे नालों के माध्यम से बहकर वह गंगा या अन्य नदियों में आ मिलता है। परिणामस्वरूप कभी खराब न होने वाला गंगाजल भी आज बुरी तरह से प्रदूषित होकर रह गया है।

औद्योगिक कचरा व रसायन :- वाराणसी, कोलकाता, कानपुर आदि न जाने कितने औद्योगिक नगर गंगा के तट पर ही बसे हैं। यहाँ लगे छोटे-बड़े कारखानों से बहने वाला रासायनिक दृष्टि से प्रदूषित पानी, कचरा आदि भी गन्दे नालों तथा अन्य मार्गों से आकर गंगा में ही विसर्जित होता है। इस प्रकार के तत्त्वों ने जैसे वातावरण को प्रदूषित कर रखा है, वैसे ही गंगाजल का भी बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है।

मृतक एवं उनकी अस्थियों का विसर्जन :- वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि सदियों से आध्यात्मिक भावनाओं से अनुप्राणित होकर गंगा को धारा में मृतकों की अस्थियों एवं अवशिष्ट राख तो बहाई जा रही है, अनेक लावारिस और बच्चों के शव भी वहा दिये जाते हैं। बाढ़ आदि के समय मरे पशु भी धारा में आ मिलते हैं। इन सबने भी गंगा-जल प्रदूषण की स्थितियाँ पैदा कर दी हैं। गंगा के प्रवाह स्थल और आसपास से वनों का निरन्तर कटाव, वनस्पतियों, औषधीय तत्त्वों का विनाश भी प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण है। गंगा-जल को प्रदूषित करने में न्यूनाधिक इन सभी का योगदान है।

गंगा प्रदूषण दूर करने के उपाय :- विगत वर्षों में गंगा-जल का प्रदूषण समाप्त करने के लिए एक योजना बनाई गई थी। योजना के अन्तर्गत दो कार्य मुख्य रूप से किए जाने का प्रावधान किया गया था। एक तो यह कि जो गन्दे नाले गंगा में आकर गिरते हैं या तो उनकी दिशा मोड़ दी जाए या फिर उनमें जलशोधन करने वाले संयन्त्र लगाकर जल को शुद्ध साफ कर गंगा में गिरने दिया जाए। शोधन से प्राप्त मलबा बड़ी उपयोगी खाद का काम दे सकता है। 

दूसरा यह कि कल-कारखानों में ऐसे संयन्त्र लगाए जाएँ जो उस जल का शोधन कर सकें तथा शेष कचरे को भूमि के भीतर दफन कर दिया जाए। शायद ऐसा कुछ करने का एक सीमा तक प्रयास भी किया गया, पर काम बहुत आगे नहीं बढ़ सका, जबकि गंगा के साथ जुड़ी भारतीयता का ध्यान रख इसे पूर्ण करना बहुत आवश्यक है।

आधुनिक और वैज्ञानिक दृष्टि अपनाकर तथा अपने हो हित में गंगा जन्न में शव बहाना बन्द किया जा सकता है। धारा के निकास के आसपास वृक्ष वनस्पतियों आदि का कटाव कठोरता से प्रतिबंधित कर कटे स्थान पर उनका पुनर्विकास कर पाना आज कोई कठिन बात नहीं अन्य ऐसे कारक तत्वों का भी थोड़ा प्रयास करके निराकण किया जात है, जो गंगा-जल को प्रदूषित कर रहे हैं। भारत सरकार भी जल प्रदूषण की समस्या के प्रति जागरूक है और इसने सन् 194 में 'जल प्रदूषण निवारण. अधिनियम' भी लागू किया है।

उपसंहार - आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रकृति के अद्भुत संगम भारत के भूलोक को गौरव तथा प्रकृति का पुण्य स्थल कहा गया है। इस भारत-भूमि तथा भारतवासियों में नये जीवन तथा नयी शक्ति का संचार करने का श्रेय गंगा नदी को जाता है

“गंगा नदियों के किनारे भीड़ छवि पाने लगी।

मिलकर जल- ध्वनि में गल-ध्वनि अमृत बरसाने लगी।

सस्वर इधर श्रुति-मंत्र लहरी, उधर लहरी कहाँ 

तिस पर उमंगों की तरंगें, रवर्ग में भी क्या रहा?"

गंगा को भारत की जीवन-रेखा तथा गंगा की कहानी को भारत की कहानी माना जाता है। गंगा की महिमा अपार है। अत: गंगा की शुद्धता लिए प्राथमिकता से प्रयास किये जाने चाहिए।

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