नारी शिक्षा का स्वरूप पर निबंध | Nari Shiksha Ka Svarup Par Nibandh

नारी शिक्षा का स्वरूप पर निबंध | Nari Shiksha Ka Svarup par nibandh

संकेत बिन्दु :- भूमिका, प्राचीनकाल में नारी शिक्षा की व्यवस्था 19वीं शताब्दी में नारी शिक्षा का स्वरूप स्त्रियों की शिक्षा के लिए उठाए गए कदम, स्त्री शिक्षा में सुधार की आवश्यकता उपसंहार

भूमिका :- कहा जाता है, यदि एक पुरुष शिक्षित होता है, तो केवल वही शिक्षित होता है, किन्तु यदि एक स्त्री शिक्षित होती है, तो पूरा परिवार शिक्षित होता है। इस कथन से स्त्री शिक्षा के महत्त्व का अनुमान लगाया जा सकता है।

समाज में होते परिवर्तन को देखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि हर क्षेत्र में स्त्री को समान अधिकार मिलें। यह स्त्री शिक्षा के बल पर ही सम्भव है। हालाँकि सामाजिक विधानों ने महिलाओं को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक अधिकार दिए हैं, लेकिन मात्र अधिकार प्राप्त होना, उन्हें इन अधिकारों के लाभ प्राप्त करने के लिए प्रेरित नहीं कर सकता। कितनी ही स्त्रियाँ इन अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाती हैं।

इसका कारण है-अशिक्षा वे जागरूक नहीं है और आज भी परम्परागत मूल्यों को अपनाए हुए हैं। साहस की कमी उन्हें साहसिक कदम उठाने से रोकती है, इसलिए शिक्षा ही उन्हें उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण से सम्पन्न व्यक्तित्व की स्वामिनी बनाएगी तथा उनकी अभिरुचियों, मूल्यों एवं भूमिका विषयक विचारों को बदलेगी।

प्राचीनकाल में नारी शिक्षा की व्यवस्था :- यदि हम भारतीय समाज के इतिहास का अध्ययन करें, तो यह दृष्टव्य होता है कि कुछ अन्धकारमय कालखण्ड को छोड़कर यहाँ सामान्यतया स्त्री की शिक्षा एवं संस्कार को महत्त्व प्रदान नहीं किया गया। प्राचीनकाल में नारियाँ पुस्तक रचना, शास्त्रार्थ तथा अध्यापन कार्य के रूप में उच्च शिक्षा का उपयोग करती थी शास्त्रार्थ प्रवीण गार्गी और अनुसूइया का नाम जगत् प्रसिद्ध है। उन दिनों की नारियों को सैनिक शिक्षा भी दी जाती थी। इसके अतिरिक्त, स्त्रियों को ललित कला, नृत्य, संगीत आदि विधाओं की शिक्षा भी दी जाती थी, इसके बाद बौद्ध-युग में भी स्त्री शिक्षा महत्त्व का विषय रही।

मध्यकाल में मुस्लिम सभ्यता एवं संस्कृति के आगमन के साथ स्त्री शिक्षा का स्तर लगातार गिरता चला गया। पर्दा प्रथा के कारण स्त्री शिक्षा लगभग लुप्तप्राय हो गई, केवल अपवाद रूप में समृद्ध मुसलमान परिवारों की महिलाएं ही घर पर शिक्षा ग्रहण करती थी, लेकिन सामान्यतया महिलाओं की स्थिति मध्यकाल में सबसे दयनीय थी हिन्दू समाज में भी बाल विवाह सती प्रथा जैसी अनेक कुरीतियों के कारण बहुसंख्यक नारियाँ शिक्षा से वंचित रहीं।

19वीं शताब्दी में नारी शिक्षा का स्वरूप :- 19वीं में नवजागरण की चेतना पूरे विश्व में व्याप्त थी, इसलिए वैश्विक स्तर पर स्त्री शिक्षा के सन्दर्भ में उल्लेखनीय प्रगति हुई। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। उसके प्रभाव से भारतीय समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों को समाप्त करने को कोशिशें की गईं। भारत में तेज़ी से प्रारम्भ हुए सामाजिक धार्मिक सुधार आन्दोलनों ने कुप्रथाओं को दूर करके स्त्री-शिक्षा को प्रोत्साहित किया। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने लड़कियों की शिक्षा के लिए बंगाल में कई विद्यालय खुलवाए। 1882 ई. के 'भारतीय शिक्षा आयोग' (हण्टर कमीशन) के द्वारा भारत सरकार की ओर से शिक्षण प्रशिक्षण का प्रबन्ध हुआ।

इस आयोग ने स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में अनेक उत्साहवर्द्धक सुझाव प्रस्तुत किए, लेकिन रूढ़िवादिता के कारण वे अधिक प्रभावी तरीके से कार्यान्वित नहीं हो सके। नारी उच्च शिक्षा की दृष्टि से वर्ष 1916 बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस समय दिल्ली में लेडी हार्डिंग कॉलेज एवं समाज सुधारक डीके कर्वे द्वारा बम्बई में लड़कियों के लिए विश्वविद्यालय खोला गया। इसी समय मुस्लिम स्त्रियों ने भी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पदार्पण किया। स्त्रियों की प्राविधिक शिक्षा में कला, कृषि, वाणिज्य आदि का समावेश हुआ और नारी सहशिक्षा की ओर अग्रसर हुई।

स्त्रियों की शिक्षा के लिए उठाए गए कदम 

(i) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड के अन्तर्गत सरकार ने स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए स्कूलों में 5% महिला अध्यापिकाओं की नियुक्ति का प्रावधान किया।

(ii) लड़कियों के लिए गैर-औपचारिक शिक्षा (Non-formal Education) केन्द्रों की संख्या में वृद्धि की गई। 

(iii) 'महिला समाख्या (स्त्रियों की समानता के लिए शिक्षा) परियोजना प्रारम्भ की गई, जिसका उद्देश्य प्रत्येक गाँव में महिला संघ के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने के लिए महिलाओं को तैयार करना है। 

(iv) सजग कार्यवाही द्वारा नवोदय विद्यालयों में लड़कियों का प्रवेश 28% तक सुनिश्चित किया गया है। 

(v) प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों में स्त्रियों के प्रवेश पर विशेष ध्यान दिया गया है।

(vi) ग्रामीण प्रकार्यात्मक साक्षरता कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रौढ़ शिक्षा में नामांकित लोगों में अधिकांश स्त्रियों को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया। इसके अतिरिक्त समय-समय पर बनाई गई स्त्री शिक्षा सम्बन्धी नीतियों मे भी महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में भी स्त्री-पुरुष समानता के लिए स्त्री शिक्षा पर बल दिया, जो नवीन मूल्यों को विकसित करेगी। इस नीति में स्त्रियों के विकास के लिए सक्रिय कार्यक्रम बनाने हेतु शैक्षिक संस्थाओं को प्रोत्साहन देने, स्त्रियों को निरक्षरता समाप्त करने, प्रारम्भिक शिक्षा तक स्त्रियों की पहुँच सम्बन्धी बाधाओं को हटाने तथा व्यावसायिक, प्राविधिक एवं पेशेवर शिक्षा पाठ्यक्रमों में लिंग रूढ़ियों के स्थिर रूपों को समाप्त करने के लिए गैर-भेदभाव नीति अपनाने आदि पर जोर दिया गया।

स्त्री शिक्षा में सुधार की आवश्यकता :- वास्तविकता तो यह है कि अभी भी हमें स्त्री शिक्षा को विस्तार देने की दिशा में बहुत से प्रयास और करने हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की केवल 65.46% महिलाएँ शिक्षित है अर्थात् महिलाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग शिक्षा की पहुंच से दूर है। शहरी क्षेत्रों में जेण्डर के आधार पर भेदभाव बहुत कम देखने को मिलता है, जिससे वहाँ स्त्री शिक्षा की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है, लेकिन इस मानसिकता के कारण ग्रामीण परिवेश और निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर से आने वाली लड़कियाँ आज भी शैक्षिक अवसरों से वंचित हैं।

उपसंहार :- किसी भी स्वस्थ एवं उन्नत समाज और राष्ट्र के लिए 'आधी आबादी' अर्थात् महिलाओं का योगदान परम आवश्यक है, लेकिन वे अपना प्रभावी योगदान तभी दे पाएंगी जब वे शिक्षित होगी, इसलिए समाज के सभी सदस्यों को स्त्रियों की उन्नति के लिए और उनके माध्यम से राष्ट्र के विकास के लिए स्त्री शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। महिलाओं की प्रगति ही समाज और देश की प्रगति का आधार है।

FAQ -

1. नारी शिक्षा पर निबंध कैसे लिखें?

उत्तर:- नारी मां बनती है और माँ बनकर बच्चों को पालती है, उन्हें गुणवान बनाती है,और उन्हें शिक्षा प्रदान करती है, इसलिए तो कहते हैं, कि माँ ही बच्चे की सबसे पहली गुरु होती है। अगर माँ शिक्षित है, तो बच्चा भी शिक्षित और गुणवान बनता है। इसलिए एक शिक्षित और सभ्य समाज के लिए नारी का शिक्षित होना अति आवश्यक है।

2. नारी शिक्षा का महत्व क्या है?

उत्तर:- एक स्त्री शिक्षित होती है तो वह अपनी शिक्षा का उपयोग समाज और परिवार के हित के लिए करती है। एक शिक्षित स्त्री के कारण देश कि आर्थिक स्थिति और घरेलु उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है। एक शिक्षित नारी घरेलु हिंसा और अन्य अत्याचारों से सक्षमता से निजाद पा सकती है।

3. नारी का महत्व क्या है?

उत्तर:- नारी के बिना नर का अस्तित्व संभव नहीं हैं। समाज विश्व के इस आधी आबादी को नजरअंदाज करके कोई भी समाज विश्व आगे नहीं बढ़ सकता। नारी के प्रति हिनता तथा उसके निरादर की भावना समाज को गर्त की ओर ले जा रही हैं। प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में नारी को उचित स्थान प्राप्त था।

4. स्त्री शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?

उत्तर:- अतः महिलाओं की शिक्षा के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं: 

1. महिलाओं को अपने परिवार के स्वास्थ्य और आहार में सुधार करने में सक्षम बनाना । 

2. महिलाओं की उत्पादक क्षमता को बढ़ाना, इस प्रकार उनके परिवार के जीवन स्तर को ऊपर उठाना।

5. महिला शिक्षा के क्या लाभ है?

उत्तर:- एक शिक्षित महिला एक बेहतर इंसान, सफल माँ और एक जिम्मेदार नागरिक हो सकती है। महिलाओं को शिक्षित करने से निश्चित तौर पर जीवन स्तर में और घर के बाहर भी वृद्धि होती है। एक शिक्षित महिला अपने बच्चों को आगे पढ़ाई करने के लिए मजबूर करेगी जिससे बेहतर जीवन जीने की इच्छाशक्ति को भी बढ़ावा मिलेगा।

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