पुस्तकों का महत्त्व पर निबंध | पुस्तकों से प्राप्त होने वाला लाभ

संकेत बिन्दु :- भूमिका, पुस्तकों से प्राप्त होने वाला लाभ, पुस्तकें जानकारी प्राप्त करने का स्रोत, पुस्तकें शिक्षा प्रदान करने का साधन, वैज्ञानिक युग की देन ई-पुस्तकें, उपसंहार

पुस्तकों का महत्त्व पर निबंध | पुस्तकों से प्राप्त होने वाला लाभ

 

भूमिका :- "पुस्तके मित्रों में सबसे शान्त व स्थिर हैं, वे सलाहकारों में सबसे सुलभ व बुद्धिमान हैं और शिक्षकों में सबसे धैर्यवान है।" चार्ल्स विलियम इलियट की कही यह बात पुस्तकों की महत्ता को उजागर करती है। निःसन्देह पुस्तकें ज्ञानार्जन करने, मार्गदर्शन करने एवं परामर्श देने में विशेष भूमिका निभाती हैं। पुस्तके मनुष्य के मानसिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक, चारित्रिक, व्यावसायिक एवं राजनीतिक विकास में सहायक होती है।

महात्मा गाँधी ने कहा है- "पुस्तकों का मूल्य रत्नों से भी अधिक है, क्योंकि पुस्तके अन्तःकरण को उज्ज्वल करती है।" पुस्तक पढ़ने से होने वाले लाभ को देखते हुए, उन्होंने अन्यत्र कहा है- "पुराने वस्त्र पहनो, पर नई पुस्तकें खरीदो।"

पुस्तकों से प्राप्त होने वाला लाभ :- पुस्तकें ज्ञान का संरक्षण करती हैं। किसी भी देश की सभ्यता-संस्कृति के संरक्षण एवं उसके प्रचार-प्रसार में पुस्तकें अहम् भूमिका निभाती हैं। सचमुच पुस्तके सुख और आनन्द का भण्डार होती हैं। जो लोग अच्छी पुस्तके नहीं पढ़ते या पुस्तकें पढ़ने में जिनकी कोई रुचि नहीं होती, वे जीवन को बहुत सौ सच्चाइयों से अनभिज्ञ रह जाते हैं। पुस्तकें पढ़ने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि हम इनसे जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति जुटा पाते हैं। कठिन से कठिन समय में भी पुस्तकें हमारा उचित मार्गदर्शन करती हैं। जिन लोगों को पुस्तके पढ़ने का शौक होता है, वे लोग अपने खाली समय का सदुपयोग पुस्तकों के ज़रिए ज्ञानार्जन के लिए करते हैं।

पुस्तकें जानकारी प्राप्त करने का स्रोत :- रेने डकार्टेस ने कहा भी है— "सभी अच्छी पुस्तकों को पढ़ना पिछली शताब्दियों के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों के साथ संवाद करने जैसा है" और सचमुच प्राचीनकाल के बारे में जानने का सबसे अच्छा स्रोत पुस्तकें ही होती हैं। वैदिक साहित्यों से हमें उस काल के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक पहलुओं की जानकारी मिलती है। पुस्तके इतिहास के अतिरिक्त विज्ञान के संरक्षण एवं प्रसार में भी सहायक होती है।

विश्व की हर सभ्यता के विकास में पुस्तकों का प्रमुख योगदान रहा है। मध्यकाल में पुनर्जागरण में भी पुस्तकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भी पुस्तकों ने अग्रणी भूमिका अदा की। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शब्दों में— "पुस्तकें वे साधन हैं, जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।"

पुस्तकें शिक्षा प्रदान करने का साधन :- पुस्तकें शिक्षा प्रदान करने का प्रमुख साधन है। पुस्तकों के बिना शिक्षण की क्रिया अत्यन्त कठिन हो सकती हैं। कई मामलों में तो पुस्तकों के अभाव में शिक्षण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त पुरक पुस्तकों की भी व्यवस्था विद्यार्थियों के विकास के लिए की जाती है। पाठ्यपुस्तकें जहाँ छात्रों को पाठ्यक्रम सम्बन्धी जानकारी देती हैं, वहीं पूरक पुस्तकें छात्रों में स्वाध्याय की योग्यता विकसित करने में सहायक होती है। पुस्तकें शिक्षा का प्रमुख साधन तो हैं ही, साथ ही इनके माध्यम से लोगों में सद्वृत्तियों का विकास भी किया जा सकता है, ये सृजनात्मक क्षमता के विकास में भी सहायक होती है। इतना ही नहीं इनसे अच्छा मनोरंजन भी होता है।

वैज्ञानिक युग की देन : ई-पुस्तकें :- वर्तमान युग सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। इस युग में इण्टरनेट के प्रयोग में तेज़ी से वृद्धि हुई है। इण्टरनेट से सूचना प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि कहीं भेजना भी सस्ता एवं सुलभ हो गया है। आज ई-पुस्तकों के माध्यम से काफ़ी सरलता से विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ जुटाई जा रही हैं। ई-पुस्तक अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक पुस्तक का अर्थ है – डिजिटल रूप में उपलब्ध पुस्तक। ये पुस्तकें कागज़ी रूप में न होकर ये डिजिटल संचिका के रूप में होती हैं, जिन्हें कम्प्यूटर, मोबाइल एवं अन्य डिजिटल यन्त्रो पर पढ़ा जा सकता है।

उपसंहार :- कुछ लोगों का मानना है कि इण्टरनेट एवं ई-पुस्तकों की उपलब्धता के बाद कागज़ी पुस्तकों के प्रति लोगों का लगाव धीरे-धीरे कम होता जाएगा, किन्तु ऐसा मानना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है। इण्टरनेट पुस्तक का विकल्प कभी भी नहीं हो सकता। इण्टरनेट से पुस्तकों के महत्त्व में वृद्धि हुई है, न कि इसके कारण पुस्तकों के प्रति लोगों के लगाव में कमी फिर सही मायने में देखा जाए, तो ई-पुस्तक भी तो कागजी पुस्तक का ही आधुनिक रूप है। अतः यह कहना सर्वथा गलत होगा कि आने वाले दिनों में पुस्तक की महत्ता कम हो जाएगी। पुस्तक की महत्ता को स्वीकारते हुए लोकमान्य तिलक ने कहा था "मैं नरक में भी उत्तम पुस्तको का स्वागत करूंगा, क्योंकि इनमें वह शक्ति है कि ये जहाँ भी रहेंगी, वहाँ अपने आप स्वर्ग बन जाएगा। पुस्तकें सचमुच हमारी मित्र है। वे अपना अमृत-कोश सदा हम पर न्योछावर करने को तैयार रहती हैं। उनमें छिपी अनुभव की बातें हमारा मार्गदर्शन करती हैं।"

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