आधुनिक युग में शिक्षा प्रणाली | वर्तमान शिक्षा पद्धति पर निबंध
संकेत बिन्दु :- भूमिका, प्राचीन शिक्षा पद्धति, नई शिक्षा पद्धति, व्यावहारिक शिक्षा की आवश्यकता, उपसंहार
भूमिका :- शिक्षा मानव समाज की प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है, क्योंकि किसी भी देश की विकास प्रक्रिया का यह एक अभिन्न अंग है। शिक्षा से तात्पर्य है— शक्ति को ग्रहण कर मनुष्य द्वारा सही अर्थ में अपनी क्षमताओं का उपयोग करना सीखना, ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर बढ़ना। वर्तमान समय में शिक्षा अपनी आधारभूत भूमिका का निर्वहन ठीक से नहीं कर पा रही है, इसलिए इसके औचित्य पर प्रश्नचिह्न खड़ा हो रहा है।
प्राचीन शिक्षा पद्धति :- प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी नीतियों से परिपूर्णता थी। नीति मनुष्य के जीवन को सही दिशा-निर्देश देती है, जो उसके आगे बढ़ने या विकास करने का माध्यम बनती है। शिक्षा मनुष्य का सम्यक् उत्थान करती है। शिक्षा का सम्बन्ध नीति से बनाए रखना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि नीति-विहीन शिक्षा भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है और मनुष्य का जीवन पशु से भी बदतर कर देती है।
नई शिक्षा पद्धति :- किसी भी देश का स्वरूप और उसके मानव संसाधन का स्तर शिक्षा प्रणाली के स्तर पर निर्भर करता है। वर्तमान समय में शिक्षा मुख्यतः तीन श्रेणियों में सम्पन्न होती है—(i) प्राथमिक (ii) माध्यमिक एवं (iii) उच्च या विश्वविद्यालय - शिक्षा। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण श्रेणी माध्यमिक शिक्षा की होती है, क्योंकि इस सीमा को पार करने के उपरान्त ही विद्यार्थी विश्वविद्यालीय-शिक्षा की ओर बढ़ता है और आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाने वाले विद्यार्थी जीवन-यापन की दिशा में आगे बढ़ जाते हैं। अतः माध्यमिक शिक्षा किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होती है, जिसके कमजोर होने पर राष्ट्र को घुटने टेकने पड़ सकते हैं। माध्यमिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए ही हमारे देश में माध्यमिक स्तर
तक की शिक्षा को निःशुल्क शिक्षा के अन्तर्गत लाभकारी बनाने का प्रयत्न किया गया है। शिक्षा पद्धति में राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक सुधार के लिए अनेक योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। समाज में शोषित वर्गों; जैसे—महिलाओं, पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों आदि में रहने वाले लोगों के लिए हमारी सरकार ने उच्च शिक्षा के विशेष कार्यक्रम, जानकारी और कुशलता बढ़ाने के लिए सतत् शिक्षा के कार्यक्रम आदि 'इन्दिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय' के अन्तर्गत प्रारम्भ किए हैं।
इसके अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अच्छे स्तर की आधुनिक शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 'नवोदय विद्यालय' के अन्तर्गत उनका चयन प्रवेश परीक्षा के आधार पर किया जाता है। स्थानान्तरणीय पदों पर कार्यरत् केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के बच्चों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना करने की योजना भी अत्यन्त सराहनीय है।
व्यावहारिक शिक्षा की आवश्यकता :- वास्तव में, अब आवश्यकता है इस पर सच्ची लगन एवं ईमानदारी से अमल करने की। 'शिक्षा का अधिकार कानून, 2009' लागू हो जाने के बाद भी समाज का 6-14 वर्ष तक की आयु का कोई भी बच्चा यदि शिक्षा से वंचित रह जाता है, तो इसकी जिम्मेदारी हमारी कार्य प्रणाली की ही होगी। शिक्षा के क्षेत्र में अयोग्य व्यक्तियों को गलत प्रश्रय देना, देश के विकास के साथ खिलवाड़ करना है। शिक्षा के मन्दिर को गन्दी राजनीति का क्रीड़ा-स्थल नहीं बनाया जाना चाहिए।
उपसंहार :- भारत के सुन्दर भविष्य के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा का समुचित स्वस्थ वातावरण तैयार किया जाए, जहाँ शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक रूप से स्वस्थ युवा वर्ग अपनी क्षमताओं एवं योग्यताओं का विकास कर, अपनी सक्षमता का उपयोग देश के विकास में कर सकें। आज भारत देश को ऐसे शिक्षित एवं समर्पित युवा वर्ग की आवश्यकता है, जो स्वयं को देश की खुशहाली एवं प्रगति के लिए पूरी तरह समर्पित कर दें। यह नया वर्ग तभी निर्मित हो पाएगा, जब देश अपनी शिक्षा प्रणाली को नैतिक शिक्षा एवं व्यावहारिक शिक्षा से जोड़े, ताकि शिक्षा प्राप्ति के बाद युवा वर्ग को अपने जीवन-यापन एवं व्यक्तित्व को बचाए रखने के लिए किसी अयोग्य व्यक्ति के आगे हाथ न फैलाना पड़े।
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