भारत में औद्योगीकरण पर निबंध|औद्योगीकरण की शुरूआत एवं इसके लाभ
संकेत बिन्दु :- भूमिका, औद्योगीकरण की शुरूआत एवं इसके लाभ, भारत में औद्योगीकरण, भारत में विदेशी निवेश की शुरूआत, भारतीय अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग का स्थान, औद्योगीकरण में कोयले का महत्व, उपसंहार
भूमिका :- औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण का एक अंग है। औद्योगीकरण एक सामाजिक तथा आर्थिक प्रक्रिया है, जिसमें उद्योग-धन्धों की बहुलता होती है। औद्योगीकरण के कारण शहरीकरण को बढ़ावा मिलता है एवं मानव समूह की सामाजिक-आर्थिक स्थिति बदल जाती है। अतः अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु उद्योगों की स्थापना एवं उनका विकास औद्योगीकरण कहलाता है। इसके कारण वस्तुओं के उत्पादन में तेजी से वृद्धि होती है, किन्तु इसके लिए अत्यधिक ऊर्जा की खपत करनी पड़ती है। औद्योगीकरण के लिए आधारभूत संरचनाओं अर्थात् सड़क परिवहन, संचार व्यवस्था एवं ऊर्जा के विकास की आवश्यकता पड़ती है। इस तरह औद्योगीकरण अर्थव्यवस्था में सुधार भी लाता है।
औद्योगीकरण की शुरूआत एवं इसके लाभ :- वास्तव में, औद्योगीकरण की शुरूआत 18वीं शताब्दी के मध्य में इंग्लैण्ड में हुई थी। इसके बाद यूरोप के अन्य देश भी औद्योगीकरण की राह पर चल निकले। एशिया में औद्योगीकरण की शुरूआत 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुई थी। इसके फलस्वरूप उद्योग-धन्धों, व्यापार आदि में आशातीत वृद्धि देखी गई। धीरे-धीरे सम्पूर्ण विश्व औद्योगीकरण पर बल देता नजर आया। इससे जहाँ आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलता है, वहीं विदेशी निवेश में भी वृद्धि होती है। आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलने एवं विदेशी निवेश में वृद्धि होने के कारण अत्यधिक संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है, जिससे बेरोज़गारी जैसी समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है। औद्योगीकरण विदेशी मुद्रा के अर्जन में भी सहायक होता है। औद्योगीकरण की प्रक्रिया में हर प्रकार की सुविधा एवं छूट के कारण वस्तुओं की निर्माण लागत को कम किया जाता है। इस तरह, आर्थिक प्रगति के दृष्टिकोण से भी औद्योगीकरण अत्यन्त लाभप्रद है।
भारत में औद्योगीकरण :- इंग्लैण्ड की आरम्भिक समृद्धि में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है और यही आरम्भिक समृद्धि आगे चलकर भारत के औद्योगीकरण का आधार बनी। उल्लेखनीय है कि प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था पर यूरोपीय व्यापारियों को पकड़ ढीली थी। ब्रिटिश वस्तुओं के आयात में आई अस्थायी कमी ने देश उद्योग को प्रेरित किया, जिसने भारतीय बाजार की जरूरतें पूरी करने के लिए कदम उठाए। इससे देशी उद्योग को अत्यधिक बल मिला। युद्ध की समाप्ति तक सूती कपड़ों का भारत में गिनतोवार आयात घटकर मामूली सा रह गया। इसी बीच थलसेना तथा जलसेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इंजीनियरिंग से सम्बद्ध कम्पनियाँ उभर आईं। लोहे और इस्पात, कागज़ तथा सीमेण्ट में भी भारत ने अपनी आवश्यकताओं की अधिक पूर्ति शुरू कर दी।
यद्यपि भारतीय उद्योग एवं पूँजी पर ब्रिटिश नियन्त्रण में कोई महत्त्वपूर्ण कमी नहीं आई थी, पर दो विश्वयुद्धों के बीच के काल में भारतीयों ने उद्योगों के कामकाज में अधिक भूमिका निभानी शुरू कर दी। इस दिशा में सबसे उल्लेखनीय प्रगति वर्ष 1924 में टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी द्वारा की गई, जब टाटा के प्रबन्धन के तहत जल विद्युत परियोजनाएँ चालू हुईं। अनेक भारतीयों ने जूट और सीमेण्ट के उद्योगों में कदम रखा। चीनी तथा कागज़ उद्योग में भी अनेक भारतीय कम्पनियाँ उभरीं।
भारत में विदेशी निवेश की शुरूआत :- जहाँ तक भारत में विदेशी निवेश की शुरूआत की बात है, तो यह 1856 ई. में तब हुई, जब पहली बार भारत में रेलों के निर्माण के लिए सार्वजनिक ऋण द्वारा धन इकट्ठा किया गया। भारत में विदेशी पूँजी के निर्यात के साथ ही वित्तीय पूँजी के दौर का प्रारम्भ होता है। अन्य दूसरी बातों के साथ ही इसका यह अर्थ भी था कि भारतीय बाज़ार पर कब्जा करने के बाद भी असन्तुष्ट ब्रिटिश उद्योगपतियों ने अपने बाज़ारों में मुनाफे की गिरती दरों के कारण अब भारत में अपनी पूँजी लगाने तथा सस्ते भारतीय श्रम के उपयोग द्वारा माल का उत्पादन करने का निर्णय ले लिया था। कहने की आवश्यकता नहीं कि उनके उद्देश्यों का जनकल्याण से दूर का भी रिश्ता नहीं था।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग का स्थान :- 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में यह पता चला कि हिमालय की तराई तथा आस-पास के क्षेत्रों में चाय की खेती सफतापूर्वक की जा सकती है। अतः इन क्षेत्रों में इस उद्योग का विकास किया गया। औद्योगीकरण के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में कपड़ा उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस समय कपड़ा उद्योग देश के औद्योगिक उत्पादन में लगभग 14% का और सकल घरेलू उत्पाद में 4% का योगदान कर रहा है। लगभग 3.5 करोड़ लोगों को इससे रोज़गार मिल रहा कपड़ा उद्योग देश में कृषि के बाद रोज़गार प्रदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है। भारत, चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक देश बन गया है।
औद्योगीकरण में कोयले का महत्त्व :- औद्योगीकरण में कोयले का अपना महत्त्व है। कोयला, ऊर्जा एवं शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। भारत, चीन तथा अमेरिका के बाद विश्व में कोयला उत्पादन में तीसरा स्थान रखता है। कोयले को 'काला सोना' की संज्ञा दी जाती है। यद्यपि 1774 ई. में सम्भर एवं हेटली नामक दो अंग्रेज़ों ने भारत में कोयले की खोज का कार्य प्रारम्भ किया था, किन्तु कोयला उद्योग का भारत में विधिवत् प्रादुर्भाव 1814 ई. में हुआ, जब रानीगंज क्षेत्र में कोयले की खुदाई आरम्भ हुई। रेल यातायात के विकास के साथ-साथ कोयला उद्योग का विकास भी प्रारम्भ हुआ।
उपसंहार :- औद्योगीकरण के निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि इससे भारत की अर्थव्यवस्था को एक गति प्राप्त हुई है। इसने लोगों को रोजगार से जोड़ा है एवं भारत के विकास में एक महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। औद्योगीकरण के मायने तब वास्तव में सार्थक होंगे, जब हर हाथ को न केवल रोज़गार मिले, बल्कि भारत दुनिया के सामने आर्थिक रूप से सशक्त देश की एक मिसाल भी बने।
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