ग्रामीण रोज़गार योजनाएँ पर निबंध|स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
संकेत बिन्दु :- भूमिका, ग्रामीण मजदूरी रोजगार कार्यक्रम, मनरेगा, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, उपसंहार।
भूमिका :- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के सामने एक बड़ी चुनौती थी - ग्रामीणों की दशा सुधारने के लिए उन्हें रोज़गार के अवसर प्रदान करना, क्योंकि किसानों को समृद्ध किए बिना देश की पूर्ण समृद्धि की कल्पना नहीं की जा सकती थी।
ग्रामीण रोज़गार योजनाएँ स्वतन्त्र भारत में किसानों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में समय-समय पर कई रोज़गार योजनाओं व कार्यक्रमों को मूर्त रूप दिया गया, जिनमें ग्रामीण मज़दूर रोज़गार कार्यक्रम, मनरेगा, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, काम के बदले अनाज कार्यक्रम, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोज़गार योजना आदि प्रमुख हैं। इन विकासोन्मुख योजनाओं व कार्यक्रमों के कारण देश के किसानों की दशा में पहले से बहुत सुधार आया है, परन्तु अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में काफ़ी अधिक बेरोज़गारी है, जिसका प्रमुख कारण है—देश की जनसंख्या का दिनोंदिन अत्यधिक तेज़ गति से बढ़ना।
ग्रामीण मज़दूरी रोज़गार कार्यक्रम :- केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 1960-61 में ग्रामीण जनशक्ति कार्यक्रम के रूप में इस कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। उसके बाद वर्ष 1971-72 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार उपलब्ध कराए जाने हेतु ग्रामीण रोज़गार क्रैश स्कीम, कृषि श्रमिक स्कीम, लघु कृषक विकास एजेंसी, सूखा संवेदी क्षेत्र कार्यक्रम की आधारशिला रखी गई।
वर्ष 1980 में इन सबको सम्मिलित रूप से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम और ग्रामीण भूमिहीन रोज़गार गारण्टी कार्यक्रम में और वर्ष 1993 में इन्हें पुन: विस्तारित कर जवाहर रोज़गार योजना में परिवर्तित कर दिया गया। वर्ष 1999-2000 में जवाहर रोज़गार योजना को जवाहर ग्राम समृद्धि योजना में शामिल कर लिया गया। वर्ष 2001-02 में इसे सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम एवं वर्ष 2005 में काम के बदले अनाज कार्यक्रम में विलय किया गया। केन्द्र सरकार द्वारा किए गए इन प्रयासों का ग्रामीण रोज़गार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान है।
मनरेगा :- महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी अधिनियम अर्थात् मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराने का एक अधिकार सम्बद्ध कार्यक्रम है। इसका कार्यान्वयन वर्ष 2006 में देश के अत्यन्त पिछड़े 200 जिलों में किया गया। वर्ष 2007 एवं पुनः वर्ष 2008 में इसे विस्तारित कर देश के समस्त जिलों में प्रभावी कर दिया गया।
मनरेगा का उद्देश्य इच्छुक बेरोज़गार वयस्कों को वर्षभर में कम-से-कम 100 दिनों का निश्चित रोज़गार प्रदान करना रखा गया। ग्रामीणों को जीविका प्रदान करने के साथ-साथ इसका उद्देश्य पंचायती राज व्यवस्था को प्रभावी बनाना भी है। इस कार्यक्रम के द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति श्रम दिवस औसत मज़दूरी में 81 % की वृद्धि हुई है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन :- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन अर्थात् एनआरएलएम ग्रामीण विकास मन्त्रालय का एक अति महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2021-22 तक देश के ग्रामीण क्षेत्रों के 8 से 10 करोड़ निर्धन परिवारों को लाभ पहुँचाना है।
पंचायती राज संस्थाओं को विशेष महत्त्व देने वाले इस मिशन को मार्च, 2014 तक देश के 27 राज्यों सहित पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्र में कार्यान्वित कर दिया गया। इस मिशन की सहायता से अब तक देश की डेढ़ लाख महिला श्रमिकों को लाभान्वित किया जा चुका है। एनआरएलएम के द्वारा वर्ष 2013-14 के दौरान लगभग तीन लाख स्व-सहायता समूहों को मदद पहुँचाई गई और कुल 1,300 से भी अधिक ब्लॉकों को इसके अन्तर्गत लाया गया।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना :- ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से ऊपर जीवन यापन करने वाले निर्धन लोगों को स्वरोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से इस योजना को वर्ष 1999 में प्रारम्भ किया गया। इस योजना के अन्तर्गत गैर-सरकारी संस्थाओं को सुविधा प्रदाता के रूप में सम्मिलित कर स्वयंसेवी सहायता समूहों के विकास एवं पोषण पर ध्यान दिया जाता है।
इस योजना द्वारा सरकारी सब्सिडी एवं बैंक ऋण के माध्यम से ग्रामीणों तक सहायता पहुंचाई जाती है। कुल परियोजना लागत की 30% दर से दी जाने वाली सब्सिडी की अधिकतम सीमा ₹7500 तक निर्धारित की गई है। सामान्यतः 10-20 सदस्यों के द्वारा स्वयं सहायता समूह का गठन किया जा सकता है। इस योजना के अन्तर्गत अब तक लगभग 22 लाख से भी अधिक स्वयं सहायता समूहों को गठित किया गया है। लाभान्वित होने वाले स्वरोजगारियों में लगभग 48% अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति के लोग एवं लगभग 489% महिलाएं हैं।
उपसंहार :- निश्चय ही देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के तमाम साधन उपलब्ध हैं और केन्द्र व राज्य की सरकारों द्वारा समय-समय पर चलाए गए विभिन्न रोजगार सम्बद्ध कार्यक्रमों से बड़ी संख्या में ग्रामीणों को लाभ प्राप्त हुआ है, पर आज भी रोज़गार के क्षेत्र में गाँवों की स्थिति दयनीय ही है।
सरकारी स्तर पर और प्रभावी एवं लाभप्रद योजनाओं को मूर्त रूप देकर ग्रामीणों की दशा सुधारी जा सकती है, पर इसके लिए ग्रामीणों में शिक्षा का विस्तार किया जाना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि बिना लोगों को जागरूक किए काम के प्रति लगन पैदा नहीं की जा सकती। सरकारी सुविधाओं का पूर्ण लाभ प्राप्त करने हेतु भी ग्रामीणों का शिक्षित होना अत्यन्त आवश्यक है। इसके लिए गाँवों में रोजगारमूलक शिक्षा का प्रचार-प्रसार खूब जोर-शोर से करना चाहिए।
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