अन्तरिक्ष विज्ञान पर निबंध हिंदी में|Antriksh Vigyan par nibandh
Antriksh Vigyan par nibandh |
संकेत बिन्दु :- 1.भूमिका, 2.अन्तरिक्ष युग का आरम्भ, 3.अन्तरिक्ष विज्ञान का उद्देश्य, 4.अन्तरिक्ष में जाने वाले यात्री, 5.भारत की भूमिका, 6.अन्तरिक्ष विज्ञान के लाभ, 7.उपसंहार।
1.भूमिका :- अन्तरिक्ष ने प्रारम्भ से ही मानव को अपनी ओर आकर्षित किया है। पहले मनुष्य अपनी कल्पना और कहानियों के माध्यम से अन्तरिक्ष की सैर किया करता था। अपनी इस कल्पना को साकार करने के संकल्प के साथ मानव ने अन्तरिक्ष अनुसन्धान प्रारम्भ किया और उसे 20वीं सदी के मध्य के दशक में इस क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हो ही गई। आज में मनुष्य न केवल अन्तरिक्ष के कई रहस्यों को जान गया है, बल्कि वह अन्तरिक्ष की सैर करने के अपने सपने को भी साकार कर चुका है।
2.अन्तरिक्ष युग का आरम्भ :- अन्तरिक्ष में मानव के सफर की शुरूआत वर्ष 1957 में हुई। 4 अक्टूबर, 1957 को सोवियत संघ ने 'स्पुतनिक' नामक अन्तरिक्ष यान को अन्तरिक्ष की कक्षा में भेजकर एक नए अन्तरिक्ष युग शुरूआत की। इस यान में अन्तरिक्ष में जीवों पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों की का अध्ययन करने के लिए एक 'लायका' नामक कुतिया को भी भेजा गया था। अन्तरिक्ष में मानव के सफर को एक और आयाम देते हुए 31 जनवरी, 1958 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने 'एक्सप्लोरर' नामक अन्तरिक्ष यान छोड़ा। इस यान का उद्देश्य पृथ्वी के ऊपर विद्यमान चुम्बकीय क्षेत्र एवं पृथ्वी पर उसके प्रभावों का अध्ययन करना था। स्पुतनिक एवं एक्सप्लोरर के अन्तरिक्ष में भेजे जाने के साथ ही विश्व में अन्तरिक्ष युग की शुरूआत हुई, दुनिया अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ ही विकास की आधुनिक उन्नत अवस्था तक पहुँच गई है।
3.अन्तरिक्ष विज्ञान का उद्देश्य :- अन्तरिक्ष यानों का उद्देश्य अन्तरिक्ष के रहस्यों पर से पर्दा हटाना था, इसलिए अन्तरिक्ष यानों में कैमरे भी लगाए। जाते थे। अक्टूबर, 1959 में सोवियत संघ द्वारा भेजे गए लूना-3' नामक अन्तरिक्ष यान से सर्वप्रथम चन्द्रमा के चित्र प्राप्त हुए थे। इसके बाद वर्ष 1962 में अमेरिका द्वारा भेजे गए 'मैराइनर-2' नामक यान की सहायता से शुक्र ग्रह के बारे में हमें कई जानकारियाँ प्राप्त हुई। इस सफलता से प्रेरित होकर अमेरिकी अन्तरिक्ष अनुसन्धान संस्थान नासा ने वर्ष 1964 में 'मैराइनर-4' नामक अन्तरिक्ष यान का प्रक्षेपण मंगल ग्रह के रहस्यों का पता लगाने के लिए किया।
4.अन्तरिक्ष में जाने वाले यात्री :- प्रारम्भ में अन्तरिक्ष अनुसन्धान हेतु भेजे जाने वाले यान मानवरहित होते थे। अन्तरिक्ष में मानव का पहला कदम 12 अप्रैल, 1961 को पड़ा, जब सोवियत संघ के 'यूरी गागरिन' अन्तरिक्ष में पहुँचने वाले विश्व के प्रथम व्यक्ति बने। इसके बाद सोवियत संघ की ही ‘वेलेंटीना तेरेश्कोवा' ने 'वोस्टॉक-6' नामक अन्तरिक्ष यान से अन्तरिक्ष की यात्रा करके विश्व की प्रथम महिला अन्तरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त किया। मानव द्वारा शुरू किए गए अन्तरिक्ष अनुसन्धान के इतिहास में 20 जुलाई, 1969 का दिन अवस्मिरणीय है। इसी दिन अमेरिका के दो अन्तरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग एवं एडविन एल्ड्रिन ने चन्द्रमा की धरती पर अपने कदम रखे। वे 'अपोलो-11' नामक अन्तरिक्ष यान पर सवार होकर चन्द्रमा की सतह तक पहुँचे थे। इस अन्तरिक्ष यान में इन दोनों के साथ माइकेल कॉलिन्स भी सवार थे। नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रतल पर पहुँचकर कहा ने था— 'सुन्दर दृश्य है। सब कुछ सुन्दर है।'
भारतीय मूल की अमेरिकी वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स अन्तरिक्ष में सर्वाधिक 322 दिनों तक रहने वाली पहली महिला बन गई हैं। उनका दूसरा लम्बा अन्तरिक्ष मिशन 19 नवम्बर, 2012 को पूरा हुआ। उन्होंने 50 घण्टे 40 मिनट तक सात 'स्पेस वाक' कर विश्व रिकॉर्ड भी बनाया है। भारत आने पर उन्होंने कहा था- “चाँद पर जाना एक सपने जैसा होगा, मंगल पर जाना भी बेहद अच्छा रहेगा, पर मुझे लगता है कि मेरे अन्तरिक्ष यात्री बने रहने तक ऐसा सम्भव नहीं हो सकेगा।"
5.भारत की भूमिका :- भारत को अन्तरिक्ष युग में ले जाने का श्रेय प्रख्यात वैज्ञानिक 'विक्रम साराभाई' को जाता है। भारत ने अब तक अन्तरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। इसने अब तक कई उपग्रह अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित किए हैं। 'राकेश शर्मा' भारत के प्रथम अन्तरिक्ष यात्री हैं। उनके अन्तरिक्ष में पहुँचने पर भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने उन्हें बधाई देते हुए पूछा था कि वहाँ से हिन्दुस्तान कैसा लग रहा है? तो उन्होंने उत्तर देते हुए कहा था- 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।"
अन्तरिक्ष की यात्रा करने वालों में भारतीय नारी भी पीछे नहीं रही है। कल्पना चावला एक ऐसा ही नाम है, जो वर्ष 1997 में कोलम्बिया एसटीएस-87 अन्तरिक्ष यान से अन्तरिक्ष की यात्रा कर धरती पर लौटीं। 16 जनवरी, 2003 को छ: अन्य सदस्यों के साथ कोलम्बिया एसटीएस-107 से उन्होंने अन्तरिक्ष में जाने के लिए फिर से उड़ान भरी, किन्तु 16 दिनों की अन्तरिक्ष यात्रा पूर्ण कर पृथ्वी पर उतरने से पूर्व ही उनके यान में विस्फोट हो गया और उस दुर्घटना में सभी अन्तरिक्ष यात्रियों की मौत हो गई। इस प्रकार, इस दुर्घटना ने भारतीय अन्तरिक्ष परी हमसे छीन लिया।
6.अन्तरिक्ष विज्ञान के लाभ :- अन्तरिक्ष अनुसन्धान से विश्व अत्यधिक लाभान्वित की हुआ है। अन्तरिक्ष में भेजे गए उपग्रहों के कारण ही सूचना क्रान्ति शुरूआत करने में सफलता प्राप्त हुई है। विभिन्न उपग्रहों से मौसम सम्बन्धी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं एवं सूचना प्रसारण में सहयोग मिलता है। इन उपग्रहों की सहायता से पृथ्वी के विभिन्न भागों के मानचित्र बनाने में सहायता मिली है। मानव के लिए उपयोगी क्षेत्रों की खोज में भी इसके कारण विशेष सहायता मिली है। कुछ उपग्रह शिक्षा के प्रसार में भी विशेष रूप में लाभप्रद साबित हुए हैं।
इनकी सहायता से दूरस्थ क्षेत्रों में विद्यार्थियों को शिक्षा की उपलब्धता हो सकी है। विभिन्न अन्तरिक्ष यात्रियों द्वारा चन्द्रमा की सतह के सम्बन्ध में किए गए अध्ययनों से चन्द्रमा की भौगोलिक संरचना एवं उसमें उपस्थित पदार्थों के सम्बन्ध में अनेक बातों का पता चला है। मंगल, शुक्र एवं अन्य ग्रहों के रहस्यों को जानने के लिए भेजे गए यानों से इन ग्रहों के सम्बन्ध में कई रहस्यों का पता चला है। वर्ष 2014 में मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित होने के पश्चात् भारतीय उपग्रह 'मंगलयान' से भी मंगल ग्रह के बारे में लगातार सूचनाएँ प्राप्त हो रही हैं। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि मंगल ग्रह पर जीवन की सम्भावनाएँ हो सकती हैं।
7.उपसंहार :- अन्तरिक्ष युग में प्रवेश करने के बाद से मानव ने इस क्षेत्र में अनेक अभूतपूर्व उपलब्धियाँ हासिल की हैं। जिस तरह से वह इस क्षेत्र में प्रगति के पथ पर अग्रसर है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब मानव अन्तरिक्ष में अपनी बस्तियाँ बनाने में भी कामयाब हो जाएगा।
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