प्रकाश वैद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :- प्रकाश वैद्युत प्रभाव जब निश्चित आवृत्ति या उससे अधिक आवृत्ति का प्रकाश (अथवा एक निश्चित या उससे कम तरंगदैर्ध्य) धातु की सतह पर आपतित किया जाता है, तो धातु के पृष्ठ से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है। यह घटना प्रकाश वैद्युत प्रभाव कहलाती है।
आइन्सटीन ने सन् 1905 में प्रकाश वैद्युत प्रभाव की व्याख्या प्रकाश की क्वाण्टम प्रकृति के आधार पर दी। क्वाण्टम सिद्धान्त के अनुसार, किसी प्रकाश स्रोत से ऊर्जा का उत्सर्जन ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों के रूप में होता है जिन्हें फोटॉन (Photon) कहते हैं। प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा E = hv होती है, जहाँ, h प्लांक नियतांक तथा Vo प्रकाश की आवृत्ति है।
आइन्सटीन के अनुसार, जब प्रकाशीय क्वाण्टा अर्थात् फोटॉन किसी धातु की सतह पर आपतित होते हैं, तो एक फोटॉन एक मुक्त इलेक्ट्रॉन से ही अनुक्रिया करता है, तो उसमें सम्पूर्ण ऊर्जा को इलेक्ट्रॉन पूर्ण रूप से अवशोषित कर लेता है। इलेक्ट्रॉन द्वारा प्राप्त यह ऊर्जा दो रूपों में प्रयुक्त होती है।
(i) मुक्त इलेक्ट्रॉनों को धातु की सतह से बाहर निकालने में कार्य फलन (Wo = hVo) के तुल्य ऊर्जा प्रदान करती है।
(ii) शेष ऊर्जा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को गतिशील करने में अर्थात् गतिज ऊर्जा प्रदान करती है।
यदि उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों का वेग Vअधिकतम हो तथा द्रव्यमान m हो, तो उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा
Kmax = 1/2 mv²max
यदि प्रकाश सुग्राही पृष्ठ पर आपतित प्रकाश की आवृत्ति v, धातु का कार्य फलन (Wo) तथा उसके पृष्ठ से उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा K अधिकतम
हो, तब E = Wo + Kmax
hv = Wo + 1/2mv²max
1/2 mv²max = hv - Wo ...(i)
यही समीकरण को आइन्सटीन की प्रकाश वैद्युत समीकरण कहलाती है।
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