पं. प्रतापनारायण मिश्र का जीवन परिचय
संक्षिप्त परिचय
नाम - पं. प्रतापनारायण मिश्र
जन्म - 1856 ई.
जन्म स्थान - जिला- उन्नाव, गाँव-बैजे
पिता का नाम - पं. संकटाप्रसाद मिश्र
भाषा ज्ञान - संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला
प्रारम्भिक शिक्षा -कानपुर मे
आदर्श एवं गुरु - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
सम्पादन - ब्राह्मण, (1883 ई.) हिन्दुस्तान
लेखन विधा - कविता, नाटक,निबन्ध,अलोचनाए आदि
भाषा-शैली - प्रवाहमुक्त, सरल, मुहावरेदारहास्य व्यंग्यप्रधान एवं गम्भीर विचारात्मक शैली
साहित्य पहचान - निबंधकार, नाटककार, संपादक एवं कवि
निधन - 1894 ई.
साहित्य में स्थान - महान साहित्य साधक
जीवन परिचय
पं. प्रतापनारायण मिश्र भारतेन्दु युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। विपुल प्रतिभा के धनी प्रतापनारायण मिश्र जी का जन्म उन्नाव जिले के बैजे नामक गाँव में सन् 1856 में हुआ था। मिश्र जी के जन्म के कुछ समय पश्चात् ही इनके पिता पं. संकटाप्रसाद मिश्र परिवार सहित उन्नाव से कानुपर आकर बस गए, इसलिए इनकी प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा कानपुर में हुई थी। मिश्र जी के पिता एक विख्यात ज्योतिषी थे।
मिश्र जी का पैतृक व्यवसाय ज्योतिष विद्या से सम्बन्धित था, इसलिए इनके पिता की हार्दिक इच्छा थी कि उनका पुत्र भी ज्योतिष विद्या सीखे और अपने पैतृक व्यवसाय को अपनाए, परन्तु मन मौजी-स्वभाव होने के कारण इनका मन ज्योतिष विद्या में नहीं लगा।
मिश्र जी कुछ समय तक अंग्रेजी स्कूल में भी पढ़े, परन्तु वहाँ का अनुशासन इनके फक्कड़, मन-मौजी एवं मस्त प्रकृति वाले स्वभाव के विपरीत था, इसलिए मिश्र जी वहाँ भी नहीं पढ़ सके। अतः इन्होंने स्वाध्याय करने का निर्णय किया तथा अपनी कड़ी मेहनत और लगन से इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अंग्रेजी और बांग्ला पर अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया। उसी अनुभव और ज्ञान के माध्यम से उन्होंने हिन्दी साहित्य जगत् को अमूल्य निधि के रूप में अनेक रचनाएँ प्रदान कीं। आजीवन साहित्य साधना में संलग्न यह गरिमामय व्यक्तित्व सन् 1894 में मात्र 38 वर्ष की अल्पायु में पंचतत्त्व में विलीन हो गया।
साहित्यिक परिचय
पं. प्रतापनारायण मिश्र जी की रुचि लोक-साहित्य का सृजन करने में थी, इसलिए मिश्र जी ने 'लावनियाँ' और 'ख्याल' लिखकर अपना साहित्यिक जीवन प्रारम्भ किया तथा कुछ वर्षों के उपरान्त ही गद्य लेखन के क्षेत्र में उतर आए। मिश्र जी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित थे तथा उन्हें अपना गुरु और आदर्श मानते थे। इन्होंने भारतेन्दु जी जैसी भाषा-शैली अपनाकर अनेक रचनाएँ रचीं तथा 'ब्राह्मण' एवं 'हिन्दुस्तान' नामक पत्रिकाओं का सम्पादन किया व कानपुर में 'नाटक सभा' नामक संस्था बनाई। भारतेन्दु जी की कवि सुधा से प्रेरित होकर उन्होंने कविताएँ भी लिखीं। इन्होंने इतनी कम आयु में ही लगभग 50 पुस्तकों की रचना की, जिनमें कविता, नाटक, निबन्ध, आलोचनाएँ आदि सम्मिलित हैं। नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा इनकी रचनाओं का संग्रह 'प्रतापनारायण मिश्र ग्रन्थावली' नाम से प्रकाशित किया गया है।
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