स्वदेश प्रेम पर निबन्ध

रूपरेखा - (1) प्रस्तावना, (2) देश प्रेम स्वदेश प्रेम-सहज- स्वाभाविक, (3) देश प्रेम का क्षेत्र, (4) देश प्रेम के बाधक तत्व, (5) विख्यात देश-प्रेमी, (6)उपसंहार

स्वदेश प्रेम पर निबन्ध
स्वदेश प्रेम पर निबन्ध


(1) प्रस्तावना-  हम जहाँ जन्म लेते हैं, वही हमारा देश कहलाता है। मनुष्य एक भावनाशील प्राणी है वह जहाँ जन्म लेता है, विकसित होता है, हास-विलास करता है, उसके प्रति उसका गहरा प्रेम व भाव जुड़ जाता है। देश-प्रेम का भाव भी इसी प्रकार प्रगाढ़ होता जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने देश के प्रति लगाव रखता है। उसके सम्मान में अपना सम्मान उसके विकास में अपना विकास मानना उसके लिए सहज स्वाभाविक हो जाता है।

(2) देश-प्रेम-सहज.स्वाभाविक-  प्रत्येक देशवासी को अपने देश के आचार-विचार संस्कृति और सभ्यता ही सर्वश्रेष्ठ लगती है। इसका कारण है- अपने देश के प्रति अनुराग का भाव। यही देश प्रेम उसे उसके कर्तव्य के प्रति बोधपूर्ण बनाता है। वह जानता है कि अपने देश के प्रति उसका कुछ उत्तरदायित्व है। जिस देश ने उसे अपना माना है, उसे भी उसके प्रति अपना कर्तव्य पूर्ण करना है। यह भाव विकसित नहीं करना पड़ता, वरन् इसका सहज स्वाभाविक रूप में स्वत: ही विकास हो जाता है। इसका एक अति सामान्य उदाहरण देखिए कि जब एक देश का दूसरे देश के साथ क्रिकेट मैच होता है, तो हर देशवासी चाहे वह बालक, युवा या वृद्ध ही क्यों न हो, अपने पक्ष अर्थात् अपने देश की टीम की विजय के लिए हर पल उत्सुक दिखाई देता है। यदि उसके देश के खिलाड़ी विजयी हो रहे हों, तो उसका चेहरा उल्लास से चमकने लगता है। देश के प्रति अनुराग का यह छोटा-सा उदाहरण है।

(3) देश-प्रेम का क्षेत्र-  देश के प्रति प्रेम व्यक्त करने के अनेक ढंग हैं सर्वप्रथम तो अपने कर्तव्य का भली-भाँति निर्वाह करना ही सच्ची देशभक्ति है। प्रत्येक व्यक्ति यदि अपने निर्धारित कर्त्तव्य को भली-भाँति पूर्ण कर ले तो निःसन्देह देश का सर्वांगीण विकास होगा। उदाहरण के लिए व्यापारी बर्ग ईमानदारी में व्यापार करें, विद्यार्थी मनोयोग से पढ़े, कृषक खेतों में अधिकाधिक अच्छी फसल उत्पन्न करें, अध्यापक गहन रुचि से शिक्षण कार्य करें,तो निःसंदेह देश विकास के पथ पर निरन्तर अग्रसित होगा।

(4) देश-प्रेम के बाधक तत्व- देश-प्रेम में सबसे अधिक बाधक तत्व हैं- विचारों की संकीर्णता एवं स्वार्थपरता। जब व्यक्ति स्वयं को किसी धर्म, जाति या समुदाय का एक हिस्सा मात्र समझने लगता है, तब वह देश के प्रति अपने पूर्ण कर्त्तव्य से मुकर जाता है। वह छोटी-से-छोटी बातों को लेकर विवादों में उलझ जाता है। फलस्वरूप वह देश की अखंडता में अलगाववाद के बीज बो देता है। हमारे देश में यह समस्या दिन-प्रतिदिन गम्भीर होती जा रही है, जो देश की प्रगति में निरन्तर बाधक है। दूसरी बड़ी समस्या है व्यक्ति का धन के प्रति अगाध मोह। वह देश के प्रति अपने कर्त्तव्य को विस्मृत करके केवल धन कमाने के लिए त्रुटिपूर्ण कार्य करने लगता है; जैसे- भ्रष्टाचार, मिलावट व रिश्वतखोरी आदि। इसके अतिरिक्त प्रतिभाशाली युवक-युवतियाँ रुपयों के लोभ में विदेश जाकर बस जाते हैं, जिससे देश उनकी सेवाओं से वंचित हो जाता है।

यह प्रसन्नता की बात है कि आजकल कुछ विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करके विदेश जाने के बजाय अपने ही देश में कार्य व व्यापार करने में रुचि दिखा रहे हैं। यह बात नि:संदेह स्वागत करने योग्य है।

(5) विख्यात देश-प्रेमी- यह बात उल्लेखनीय है कि जिन लोगों ने देश के लिए अपने जीवन में बलिदान किए उनका नाम देश के इतिहास में अमर है। सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त से लेकर चंद्रशेखर 'आजाद' तक देश-प्रेमियों की एक लंबी कतार है। नेहरु, गांधी, पटेल, भगतसिंह आदि इसी प्रकार महान देशप्रेमियों की सैकड़ों गौरव गाथाएँ हमारी अमर धरोहर हैं।

(6) उपसंहार- सच्चा देश-प्रेमी चाहता है कि जब भी वह जन्म ले,तो वह अपने उसी देश में पैदा हो। उसे अपनी धरती, अपने वृक्षों, अपने मैदानों, अपनी नदियों से अगाध स्नेह होता है। अपने देश की महिमा सुनकर वह गर्व से फूल उठता है, तो अपने देश पर छाये संकट के बादलों को छिन्न-भिन्न करने के लिए वह सतत प्रयत्नशील रहता है। धरती भी अपने इस स्नेहशील पुत्र पर बलिहारी जाती है। देश-प्रेमी की राह में कवियों ने भी फूल बिछाएँ हैं और फूलों ने भी कामना की है कि वह देवबालाओं के जूड़े में गूंथे जाने की अपेक्षा देश-प्रेमियों के पथ में बिछ जाना चाहेंगे

   मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ में देना तुम फेंक।

 मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जायें वीर अनेक

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