मेरी प्रिय पुस्तक ( श्रीरामचरितमानस)


मेरी प्रिय पुस्तक ( श्रीरामचरितमानस)


(1) प्रस्तावना- पुस्तकें मनुष्य के एकाकी जीवन की उत्तम मित्र है।जो घनिष्ठ मित्र की तरह सदैव सान्त्वना प्रदान करती हैं। अच्छी पुस्तकें मानव के लिए सच्ची पथ-प्रदर्शिका होती हैं। मनुष्य को पुस्तकें पढ़ने में आनन्द की उपलब्धि होती है वैसे तो सभी पुस्तकें ज्ञान का अक्षय भण्डार होती हैं और उनसे मस्तिष्क विकसित होता है, परन्तु अभी तक पढ़ो गयी अनेक पुस्तकों में मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है 'श्रीरामचरितमानस' ने। इसके अध्ययन से मुझे सर्वाधिक सन्तोष, शान्ति और आनन्द की प्राप्ति हुई है।


(2) श्रीरामचरितमानस का परिचय- 'श्रीरामचरितमानस'के प्रणेता, भारतीय जनता के सच्चे प्रतिनिधि गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। उन्होंने इसकी रचना संवत् 1633 वि० में पूर्ण की थी। यह अवधी भाषा में लिखा गया उनका सर्वोत्तम ग्रन्थ है। इसमें महाकवि तुलसी ने मर्यादा-पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र के जीवन-चरित को सात काण्डों में प्रस्तुत किया है तुलसीदास जी ने इस महान् ग्रन्थ की रचना 'स्वान्तः सुखाय' की है।


(३) श्रीरामचरितमानस का महत्त्व- श्रीरामचरितमानस' हिन्दी  साहित्य का सर्वोत्कृष्ट और अनुपम ग्रन्थ है। यह हिन्दू जनता का परम पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है। अनेक विद्वान् अपने वार्तालाप को इसकी सूक्तियों का उपयोग करके प्रभावशाली बनाते हैं। श्रीरामचरितमानस की लोकप्रियता का सबसे सबल प्रमाण यही है कि इसका अनेक विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यह मानव-जीवन को सफल बनाने के लिए मैत्री, प्रेम, करुणा, शान्ति, तप, त्याग और कर्त्तव्य-परायणता का महान् सन्देश देता है।


(4) श्रीरामचरितमानस का वर्ण्य-विषय- 'श्रीरामचरितमानस' की कथा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन पर आधारित है। इसकी कथावस्तु का मूल स्रोत वाल्मीकिकृत 'रामायण' है। तुलसीदास ने अपनी कला एवं प्रतिभा के द्वारा इसे नवीन एवं मौलिक रूप प्रदान किया है। इसमें राम की रावण पर विजय दिखाते हुए प्रतीकात्मक रूप से सत्य, न्याय और धर्म की असत्य, अन्याय और अधर्म पर विजय प्रदर्शित की है। इस महान् काव्य में राम के शील, शक्ति और सौन्दर्य का मर्यादापूर्ण चित्रण है।


(5) श्रीरामचरितमानस की विशेषताएँ


(क) आदर्श चरित्रों का भण्डार- 'श्रीरामचरितमानस' आदर्श चरित्रों का पावन भण्डार है। कौशल्या मातृप्रेम की प्रतिमा है। भारत में भ्रातृभक्ति, निर्लोभिता और तप-त्याग का उच्च आदर्श है। सीता पतिपरायण आदर्श पत्नी है। लक्ष्मण सच्चे भ्रातृप्रेमी और अतुल बलशाली हैं निषाद, सुग्रीव, विभीषण आदि आदर्श मित्र एवं हनुमान सच्चे उपासक हैं।


(ख) लोकमंगल का आदर्श- तुलसी का ' श्रीरामचरितमानस' लोकमंगल की भावना का आदर्श है। तुलसी ने अपनी लोकमंगल-साधना के लिए जो भी आवश्यक समझा, उसे अपने इष्टदेव राम के चरित्र में निरूपित कर दिया है।


(ग) भारतीय समाज का दर्पण- तुलसी के श्रीरामचरितमानस' में तत्कालीन भारतीय समाज मुखरित हो उठा है। यह ग्रन्थ उस काल की रचना है, जब हिन्दू जनता पतन के गर्त में जा रही थी। वह भयभीत और चारों ओर से निराश हो चुकी थी। उस समय तुलसीदास जी ने जनता को सन्मार्ग दिखाने के लिए नानापुराण और आगमों (नागापुराणनिगमागत सम्मतं यद्) में विखरी हुई भारतीय संस्कृति को जनता की भाषा में जनता के कल्याण के लिए प्रस्तुत किया।


(घ) नीति, सदाचार और समन्वय की भावना- 'श्रीरामचरितमानस' में श्रेष्ठ नीति, सदाचार के विभिन्न सूत्र और समन्वय की भावना मिलती है। शत्रु से किस प्रकार व्यवहार किया जाये, सच्चा मित्र कौन है, अच्छे-बुरे की पहचान आदि पर भी इसमें विचार हुआ। तुलसीदास उसी वस्तु या व्यक्ति को श्रेष्ठ बतलाते हैं, जो सर्वजनहिताय हो। इसके अतिरिक्त धार्मिक, सामाजिक और साहित्यिक सभी क्षेत्रों में व्याप्त विरोधों को दूर कर कवि ने समन्वय स्थापित किया है।


(ङ) रामराज्य के रूप में आदर्श राज्य की कल्पना- कवि ने'श्रीरामचरितमानस' में आदर्श राज्य की कल्पना रामराज्य के रूप में लोगों के सामने रखी। इन्होंने व्यक्ति के स्तर से लेकर समाज और राज्य तक के समस्त अंगों का आदर्श रूप प्रस्तुत किया और निराश जन-समाज को नवीन प्रेरणा देकर रामराज्य के चरम आदर्श तक पहुँचने का मार्ग दिखाया।


(च) कला का उत्कर्ष- 'श्रीरामचरितमानस' में कला का चरम उत्कर्ष है। यह अवधी भाषा में दोहा-चौपाई शैली में लिखा महान् ग्रन्थ है। इसमें सभी रसों और काव्यगुणों का सुन्दर समावेश हुआ है। इस प्रकार काव्यकला की दृष्टि से यह एक अनुपम कृति है।


(6)उपसंहार- मेरे विचार में कालिदास और शेक्सपियर के ग्रन्थों का जो साहित्यिक महत्त्व है, चाणक्य-नीति का राजनीतिक क्षेत्र में जो भी मान है, बाइबिल, कुरान, वेदादि का जो धार्मिक सत्य है, वह सब-कुछ अकेले "श्रीरामचरितमानस' में समाविष्ट है। यह हिन्दू धर्म की ही नहीं, भारतीय समाज की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है। यही कारण है कि इसने मुझसे सर्वाधिक प्रभावित किया है। मेरा विश्वास है कि मैं इस पुस्तक से जीवन-निर्माण के लिए सर्वाधिक प्रेरणा प्राप्त करता रहूँगा।

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