छात्र व अनुशासन पर निबंध | विद्यार्थी जीवन और अनुशासन पर निबंध | विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध
(1) प्रस्तावना-यद्यपि जीवन का हर काल महत्वपूर्ण होता है, तथापि जीवन निर्माण का आधार विद्यार्थों के अध्ययन काल में ही रखा जाता है। मनुष्य का मन एक उद्गम जोड़े को भौतिक निरकु रूप में दौड़ना पसन्द करता है। यदि इस पर अनुशासन का अंकुश न हो, तो येह हमें न जाने कितनी भयंकर विपत्ति में डाल सकता है।
(2) अनुशासन की आवश्यकता:-जीवन को व्यवस्थित और
उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए विद्यार्थी जीवन से ही अनुशासन में रहना आवश्यक है। अनुशासन का अर्थ है- नियमों का शासन अर्थात् निर्धारित सिपमों के अधीन रहकर जीवन को कुसंगति व अव्यवस्था से बचाकर उचय लक्ष्य की ओर ले जाना मनमाने ढंग से कार्य करने वाले व्यक्ति को समय की कोई परवाह नहीं होती है और न ही पह असाध्य आचरण को अपनाने से डरता है। इसके फलस्वरूप जीवनभर उसे लॉछित, अपमानित और असफल होना पड़ता है। वह स्वयं की आदतों से ही विवश होता है। अत: अपनी अनुशासनहीनता के कारण उसे भारी हानि उठानी पड़ती है।
(3) प्रकृति और अनुशासन:-प्रकृति में हमें अनुशासन की सुंदर
व्यवस्था देखने को मिलती है। असंख्य तारें, सूर्य, चंद्र, निपमित रूप से अपनी निर्धारित कक्षा में भ्रमण करते हैं। प्रस्तुओं का चक्र भी नियमित रूप से घूमता है। फल-फूल भी अपनी निर्धारित ऋतु में खिलते हैं। तब मनुष्य होने नाते हमारा भी यह दायित्व है कि बाल्यकाल से ही हम अनुशासन रहना सीखें।
(4) अनुशासनहीनता और बड़ते संकट-वर्तमान समय में चारों में अनुशासनहीनता की प्रवृत्ति तीव्रता से बड़ी है ये मनमाना उपद्रव, तोड-फोड, रहतात और हुरेबाजी की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं इसके अनेक कारण हैं। प्रथम ही छ। आजकल मीडिया से बहुत प्रभावित हैं। उन्य वर्ग के विलासी जीवन, बुरी आदते और हिंसा की प्रति रोबीत चैनलों पर प्रमुखता से प्रसारित की जाती है। छात्रगण इन्हीं से प्रेरणा पाकर अनुशासनहीनता अपना होते हैं। घर के बड़े भी आज बालकों को संस्कार देने के बजाय धन देकर हो अपने कर्तव्य को पूर्ति समा लेते हैं। अपने अभिभावकों के रंग-दंग यदि का अपनाते हैं तो इनमें उनका क्या दोष?
इस बदती हुई अनुशासनहीनता का मुख्य कारण यह भी है कि कुछ अध्यापकों के लिए भी चार महत्वपूर्ण नहीं रहे। उन्हें केवल अपने वेतन में प्रयोजन होता है। इसके लिए वह ं को बेहतर ढंग से पकाने के बजाय अपने सीनियर अधिकारियों की चापलूसी करना अधिक श्रेष्ठ समझते हैं। फलस्वरूप छात्र भी उनका न तो आदर करते हैं और न ही उनको आजा मानते हैं। अत: तोड़-फोड़ और उदंडता की घटनाएं निरन्तर बढ़ती जाती हैं। अनुशासनहीनता को बढ़ाने में दलगात राजनीति ने भी अपना योगदान दिया है। आए दिन के चुनाव य पाटोवादिता ने भी छात्रों में अस्वस्थ राजनीतिक भावनाएँ भर ली है।
(5) अनुशासन आए कैसे? -माओं को अनुशासन में रखने के लिए जो दंड व्यवस्था कारगर होगी और न ही आलोचना। इसके लिए तो अभिभावक और अध्यापकों को स्वयं एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना होगा। कों को स्नेहपूर्वक अनुशासन सिखाना होगा। उनका सही सही भार्गदर्शक बनने के लिए उन्हें सजन मे मित्रवत् क्या करना चाहिए। समाज का वातावरण स्वस्थ बनाए थिमा छात्र से अनुशासन की आशा नहीं की जा सकती।
(6) उपसंहार-छात्रों को भी यह समझना चाहिए कि उनका यह समय उनके पूरे जीवन के लिए बहुमूल्य है अनुशासन में रहकर अध्ययन करने से ही वे सफलता के सोपान पार करेंगे अतः वे अनुशासन को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाएँ।
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